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गड़रिया

gaDariya

केशव तिवारी

अन्य

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केशव तिवारी

गड़रिया

केशव तिवारी

और अधिककेशव तिवारी

    मेरे गाँव के गड़रियों के पास

    अब भेड़ें नहीं हैं

    नानी कहती थी कि

    नई बहुरिया बिना गहनों के

    और चुगलख़ोर बिना चुगली के

    रह सकते हैं पर

    गड़रिये बिना भेड़ों के नहीं

    ऐसा भी नहीं है कि

    दुनिया में अब भेड़ें नहीं हैं

    नहीं है बूढ़ी कुशल उँगलियों के लिए ऊन

    जिनके ऊपर पूरे गाँव की

    जड़ावर का ज़िम्मा था

    ऐसा नहीं है कि अब

    इस हुनर ज़रूरत नहीं है

    नहीं है तो केवल इनके हुनर की ज़रूरत

    वर्षों पुरानी अपनी पहचान खो चुके ये लोग

    किस नई पहचान के साथ जिएँगे

    यह वक़्त ही

    एक अजीब अजनबीपन में जीने

    पहचान खोने का है

    पर ऐसा भी तो हुआ है

    जब-जब अपनी पहचान को खड़ी हुई हैं क़ौमें

    दुनिया को बदलना पड़ा है

    अपना खेल।

    स्रोत :
    • रचनाकार : केशव तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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