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गाछ कविता

gaachh kavita

अरुणाभ सौरभ

अन्य

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अरुणाभ सौरभ

गाछ कविता

अरुणाभ सौरभ

और अधिकअरुणाभ सौरभ

    हम छी गाछ

    प्रतीक-प्रकृतिक मनोरम परिश्रम

    सृजन केर

    एकटा स्वप्नद्रष्टाक स्वप्न

    वा कवि कल्पनाक प्रेरक तत्व

    हम छी गाछ

    चिकित्सा आधार

    बबुआन दुआरक सिंगार

    आकि दरिद बैसारक आधार

    फल-फलेरी, अड़ी-जड़ी

    हमरेपर

    चौकठि, केबाड़, खिड़की

    सोफा, पलंग

    हमरेपर

    कागत, कलम, दवात

    हमरेपर संसार

    दुनियाक ज्ञान विज्ञान

    हमरेपर

    आइ हम ठूठ छी

    एकदम

    मारल-मोचारल

    काटल

    शताब्दी पूर्वक

    सुखद स्वप्न देखि

    हम एखनहु पुलकित होइत छी

    मरलेमे सुखायलेमे

    हम मनुक्ख नहि छी

    जे गर काटलासँ पहिने चिकरब

    हमर गर सभ दिन कटैत रहल अछि

    चुप्पी हमर जन्मसिद्ध अधिकार थिक

    आब हम

    धरतीसँ उखड़िकऽ

    सीधे ढुकि जायब

    मनुक्खक माथामे

    अपन जड़िकेँ

    पसारि देबै

    सौंसे मनुक्खक देहमे

    यैह हमर प्रतिरोध होयत

    हम अपनहि जकाँ

    सभ मनुक्खक दिमागकेँ

    बना देबै, गाछ!

    गाछ उगतै

    मनोमस्तिष्कमे

    तखने केओ आर बलशाली

    आबि

    कुड़हरिसँ जड़ि लगसँ

    काटि देत मनुक्खकेँ

    तखने हम

    मनुक्खक संग चिकरब

    हमरा बचाउ...

    हमरा...

    ब...चा...

    स्रोत :
    • पुस्तक : एतबे टा नहि (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : अरुणाभ सौरभ
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2017

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