भौतिकी
याद हैं वे दिन संदीपन
जब हम रात भर जागकर
हल करते थे
रेसनिक हेलिडे
एच. सी. वर्मा
इरोडोव?
हम ढूँढ़ते थे वह एक सूत्र
जिसमें उपलब्ध जानकारी डाल
हम सुलझा देना चाहते थे
अपनी भूख
पिता का पसीना
माँ की मेहनत
रोटी का संघर्ष
देश की ग़रीबी
हम कभी
घर्षणहीन फ़र्श पर फिसलते
दो न्यूटन का बल आगे से लगता
कभी स्प्रिंग डाल कर
घंटों ऑक्सिलेट करते रहते
फिर पुली में लिपट
उछल जाते
प्रोजेक्टाइल बनकर
आइंस्टीन के समीकरण
और हाइज़नबर्ग की अनिश्चितता का
सही अर्थ समझा था हमने
सारे कणों को जोड़ने के बाद
पता चला था
अरे! एक रोशनी छूट गई!
हमें पता चला था
इतना संघर्ष हो सकता है बेकार
हमारे मेहनत का फल फूटेगा
महज़ तीन घंटे की
एक परीक्षा में।
पर हम योगी थे
हमने फ़िज़िक्स में मिलाया था
रियल पॉलिटिक
हमने टकराते देखा था
पृथ्वी से बृहस्पति को
हमने सिद्ध किया था
कि सूरज को फ़र्क़ नहीं पड़ता
चाँद रहे न रहे...
राह चलती गाड़ी को देख
उसकी सुडोलता से अधिक
हम चर्चा करते
रोलिंग फ़्रिक्शन की
eiπ को देखा था हमने
उसके शृंगार के परे
हमने श्रोडिंगर की बिल्ली को टाई पहनाई थी
बहती नदी में घोलकर पीया था
बर्नोली का सिद्धांत
हम दो समय यात्री थे
बिना काँटों वाली घड़ी पहन
प्रकाशवर्षों की यात्रा
तय की थी हमने
‘उत्तर=तीन सेकंड’
लिखते हुए।
आज—
वर्षों बाद
मेरी घड़ी में काँटें हैं
जो बहुत तेज़ दौड़ते हैं
जेब में फ़ोन
फ़ोन में पैसा
तुम्हारा नंबर है
पर तुमसे संपर्क नहीं है।
पेट में भूख नहीं
बदहज़मी है।
देश में ग़रीबी है।
सच कहूँ संदीपन—
सूत्र तो मिला
समाधान नहीं।
- रचनाकार : सौरभ राय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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