वह किसान औरत नींद में क्या देखती है

wo kisan aurat neend mein kya dekhti hai

पंकज सिंह

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वह किसान औरत नींद में क्या देखती है

पंकज सिंह

और अधिकपंकज सिंह

    वह किसान औरत नींद में क्या देखती है

    वह शायद देखती है अपने तन की धरती नींद में

    वह शायद देखती है पसीने से भरा एक चौड़ा सीना

    इतना चौड़ा कि वह ढँक ले सारी धरती

    वह शायद देखती है दुःस्वप्न में ठहरे हुए दृश्य-सा

    एक थाली भात

    वह देखती है ख़ुद को एक गुज़री हुई लंबी दुपहर में

    पहली बार स्वाद से खाते चूल्हे की मिट्टी को

    वह देखती है सारी सृष्टि रची जाती हुई

    वह देखती है वहीं कहीं टकटकी लगाए बच्चे की आँख

    हर रोज़ अनगिनत आसें लिए

    वह औरत जाने किसे एक बहुत लंबी चिट्ठी

    लिखना चाहती है लिखना जानते हुए भी

    अचानक नींद में

    कि कहीं से चला आता है बी.डी.ओ. अपनी जीप लिए

    वह औरत शायद देर तक भागती है

    फिर ख़ुद को नंगी पाती है

    वह औरत सुनती है मुखिया की हँसी देर तक नींद में

    और बंगाले की जूट मिल में हाड़ गलाते

    मरद को

    सचमुच कहीं नहीं पाती आस-पास

    नींद में

    स्रोत :
    • रचनाकार : पंकज सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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