चेहरे पर चेहरे

chehre par chehre

चमन लाल चमन

चमन लाल चमन

चेहरे पर चेहरे

चमन लाल चमन

और अधिकचमन लाल चमन

    क्या मेरे अस्तित्व का कोई अर्थ रहेगा

    अगर मैं उतार दूँ चेहरे पर से चेहरे

    मेरा अस्तित्व पिघल जाएगा

    और मैं अनाम होऊँगा।

    मैं कहाँ होऊँगा,

    भटककर कहाँ पहुँच जाऊँगा

    तेज़ आँधी में ज़रा से धूलकणों की तरह

    हो चुका जर्जर अंग-अंग मेरा

    मेरा रंग मंद पड़ जाता है

    चेहरा चेहरा नहीं रहता है

    काश मेरी कोई साँस मेरी इच्छा के अधीन हो

    यह कौन-सा आदेश लेकर तुम आए

    ज़रा मेरी आँखों में आँखें डालकर देखो

    इनमें ढेर सारी नींद भरी है

    मेरी शांति भंग होती है और मेरा

    उन्माद तोतला हो चुका है।

    लगता है संपूर्ण आकाश के माथे पर बल पड़े हैं

    वो पर्वत : मेरे द्वार पर तगादा करता है,

    मुझे यूँ उदास नहीं होना चाहिए

    मेरे होंठों पर मुस्कान हो तो

    बातें शोभायमान हो जाती हैं

    जीवन खेल ही तो है

    मैं चोरों की भाँति छिपा-छिपा फिरता हूँ।

    मुझे क्या हो गया है?

    पूछूँ तो किससे पूछँ?

    यह कौन रहा है?

    यह कैसी आवाज़ हो गई?

    नज़रें झुकाना ही बुद्धिमत्ता है

    मुझे मन और

    मन को लुभाने वाले अपने मनहर पर गर्व होना चाहिए

    रात जवान है

    उसके बालों की लट कलप रही है

    हरियाली और ओस मित्रता के द्योतक हैं

    सूर्य अस्त हो रहा है,

    प्रभात द्वार पर दस्तक दे रहा

    दिन का रंग फीका पड़ गया है

    तुम देखो आकाश में हीरे जड़ गए हैं

    हवा तेज़ चलने लगी है

    मेरा अस्तित्व मगर जवान है

    मैं थक-सा गया हूँ

    लेकिन सुस्ताना शोभा नहीं देता।

    लगता है कभी—

    मैं अपनी छाती फाड़ डालूँगा।

    जाने मेरे दिल में चुभन-सी

    क्यों होती है?

    ईश्वर कहाँ है?

    मैं अकेला-सा पड़ गया हूँ।

    जी चाहता है मैं

    अपने दाग़ दिखा दूँ

    अपना रहस्य ज़ाहिर करूँ

    मेरे अस्तित्व का कुछ भी अर्थ रहेगा?

    (सचमुच मेरे पास कुछ रहेगा?)

    मैं

    मुखौटे उतार दूँ तो

    मेरा अस्तित्व मिट जाएगा

    मेरा नाम खो जाएगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 141)
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : चमन लाल चमन
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005

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