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आँखि : आगिसँ लड़लैये कियो

ankhi ha agisan laDalaiye kiyo

अंशुमान सत्यकेतु

अन्य

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अंशुमान सत्यकेतु

आँखि : आगिसँ लड़लैये कियो

अंशुमान सत्यकेतु

और अधिकअंशुमान सत्यकेतु

    घटित-अघटितक द्वन्द्वमे ओझरायल

    एक जोड़ पथरायल

    सुखायल संवेदना

    मुरझायल जिजीविषा

    ताकि रहल बिहुँसबाक पलखति

    'नहि किछु'मे

    समेटि अपनाकेँ मेंही

    स्फुरणक जालमे

    सम्हारि लेलक आब नोरक धार

    लागल रहै जहिया

    दग्ध सुल्फाक चोट

    झरकल रहै

    पिपनी संग-संग डिम्हा

    दरकल रहै भावना

    उठल रहै बिहाड़ि

    लपटल रहै जुआरि

    पकड़ि हाथमे तरुआरि

    बढ़ल आगिसँ लड़ऽ

    मुदा

    आगिसँ लड़लैये कियो

    हारि

    धृतराष्ट्र बनि संजयकेँ ताकऽ लागल

    अपन नहि, आयातित दृष्टिये देखऽ लागल

    चाटि गेलै ओकर सभ चक्षु-रुधिरकेँ

    पाँच जोड़ काँच आँखि

    झड़ि गेलै सभ विद्रोहक पाँखि

    अपनो बुझलक

    मृत्यु थिक अंतिम सत्य

    नुका लेलक अपन दृष्टि-कोटरकेँ

    आब की इजोर-अन्हार

    जे हेबाक, से भेलै

    ठाढ़ भऽ लेलक निर्णय एकटा सक्कत

    जीयत, जीबैत रहत, लड़ैत रहत

    सदिखन अपन संतापकेँ सीबैत रहत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एखन धरि (पृष्ठ 18)
    • रचनाकार : अंशुमान सत्यकेतु
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2018

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