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कामिनी

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और अधिककामिनी

    जहिया बाजत

    अछिये की हमरा लग

    एकटा छत-विक्षत आत्मा

    खण्ड-खण्डमे बंटल

    भावनाक सिवा

    जे सब दिन खसैत अछि

    सब दिन उठैत अछि

    सब दिन संकल्पित होइत अछि

    सब दिन ओकर पयर लड़खड़ाइत छै

    अछिये की हमरा लग

    भेड़ियाक माँदमे परसल

    एकटा स्त्री देहक सिवा

    जतय दोसरक भूख मेटबैत-मेटबैत

    अपन भूख मेटा जाइत अछि

    जतय दोसरकेँ सुख दैत-दैत

    अपन खुशी हेरा जाइत अछि

    जतय शरीर रहैत अछि जीवित

    आत्मा मरि जाइत अछि

    अछिये की हमरा लग

    जर्जर भेल/ओहि संस्कारक सिवा

    जे स्त्रीकेँ केवल स्त्री बुझैत अछि

    जतय आत्म सम्मान

    पहचान नहि बनैत अछि

    जे विरासतमे देल जाइत अछि

    एकटा स्त्रीकेँ

    निभेबाक लेल

    ओकरा सम्हारिकेँ रखबाक लेल

    अछिये की हमरा लग

    अपमान भरल जीवन

    दर्द भरल/सुखक सिवा

    जे लाख चाहलाक बादो

    समेटने नै समटाइत अछि

    पकड़ने नै पकड़ाइत अछि

    अछिये की हमरा लग

    युग-युगसँ सुसुप्त

    आत्म सम्मानक

    ओहि पैघ ज्वालामुखीक सिवा

    जे सब निद्राकेँ तोड़ि

    सब तन्द्राकेँ छोड़ि

    कखनो-कोनो घड़ी

    फुटि पड़त

    एहि अन्याय/अपमानक विरुद्ध

    लड़बाक लेल/एकटा मान भरल जीवन

    जीबाक लेल

    अछिये की हमरा लग

    एकटा आत्मविश्वास

    दृढ़ संकल्पक सिवा

    जे मानैत अछि

    सामने वाला/तावे तक बजैत अछि

    जाबे तक/ओ चुप्प अछि

    जहिया बजनाइ शुरू करत

    साँस रोकि कऽ

    सुनय पड़तै लोककेँ

    ओकर आवाज/नै चाहलाक बादो

    जेना आइ तक/ सुनैत आयल अछि

    सब बात/जे ओकरा नीक नहि लगैत छल

    सुख नहि दैत छल

    स्रोत :
    • पुस्तक : परती परहक फूल (पृष्ठ 82)
    • रचनाकार : कामिनी
    • प्रकाशन : शेखर प्रकाशन
    • संस्करण : 2013

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