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गोटे पाँच बरखक बाद

gote paanch barkhak baad

विभा रानी

विभा रानी

गोटे पाँच बरखक बाद

विभा रानी

और अधिकविभा रानी

    आयल छथि

    अपन उजरका गमछा पसारने—

    'हम अहीँक अंश छी

    निर्मित हएब अहाँक कण-कणसँ

    निर्माणमे लागत

    बरख गोटे पाँच!'

    चलि गेलाह

    गमछा समेटने

    आश्वासनक खीर परोसने

    कौआकेँ तावत दऽ गेलाहए ड्यूटी

    —तोँ कुचरैत रह

    बरख गोटे पाँच!

    हम आयब

    विरहिनीक प्रिय जकाँ

    लऽ कऽ

    दू गोट नूआ

    एक गोट कम्मरि

    एक गोट लैम्प

    एक गोट घैला

    हम सजायब ओकरा

    नव वधू जकाँ—

    रहब हाथमे नेने गमछा

    कनिञाक मुँह देखौनीक

    अनकहल उमेदसँ भरल!

    लोक कतेक भुक्खरि छै

    सभ दिन रोटी चाही

    सभ दिन पानि

    सभ दिन मकान

    कतेक प्रगति केर चानपर पहुँचल

    अछि हमर संसार

    जे एके बेर भूख लागैए

    गोटे पाँच बरखक बाद

    एकेटा गमछा धोआयल राखल

    अन्मारीमे

    जकरा चीन्हि अहाँ

    खसा देब अपन सामान्य मतक टिकुरी

    गमछा फेर घूरि आओत धोबिया घाटसँ

    हमरा नेने

    गोटे पाँच बरखक बाद

    ताबति हे विरहिनी

    अहाँ करेजक केबाड़ ठोकि

    पेट बान्हि सूति जाउ

    वा विद्यापतिक गीत गाउ

    बीन लाउ बाधसँ खर-पात

    गद्दह करैत नेन्नाकेँ

    खुआ दियौ महाजनी आटाक सोहारी

    हम आयब फेर

    नूआ नेने

    कंबल लदने

    गोटे पाँच बरखक बाद

    स्रोत :
    • पुस्तक : इजोरियाक अङैठी मोड़ (पृष्ठ 54)
    • संपादक : माला झा
    • रचनाकार : विभा रानी
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 2004

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