Font by Mehr Nastaliq Web

एहि प्रजातंत्रमे…

ehi prjatantr mae…

विवेकानन्द ठाकुर

अन्य

अन्य

विवेकानन्द ठाकुर

एहि प्रजातंत्रमे…

विवेकानन्द ठाकुर

और अधिकविवेकानन्द ठाकुर

    एहि प्रजातंत्रमे

    डकैतीक विविध रूप

    किछु पारम्परिक

    किछु आधुनिक

    मुदा, लगैये

    बैंक-डकैतीसँ सुगम

    दोसर कोनो डकैती नहि

    पहिने

    जकरा संगमे नमरी

    तकरा छुल-छुल मुत्ती

    छुलमुत्ती

    आब एक सयकेँ एकटा गड्डी

    दस हजार

    पाँच सयकेँ दूटा गड्डी

    एक लाख

    हजार-लाख

    के पुछैये?

    एहि प्रजातंत्रमे…

    जखन उठैये

    चुनावक अन्हड़

    बैंक-डकैती

    भऽ जाइये

    आओरो सुगम

    दालि भातक कर जकाँ

    ओहि अन्हड़मे

    बहुत-किछु अन्हरायल

    तैयो एकदम फरिछायल

    ओना दुनूमे शोणितक

    कोनो नहि सम्बन्ध

    लागल मुदा दुनूकेँ

    शोणितक सुआद-सुगन्ध

    कार्य-क्षेत्र बाँटल

    ब-हिस्से बराबर

    हम होइ छियौ ठाढ़

    तोँ लगो नोट भोटक जोगाड़

    हम करबौ मंचपर नाटक

    तोँ बनल रह सूत्रधार

    बड्ड खर्च

    करोड़क करोड़

    तोड़ि-तोड़ि

    नोटक गड्डी

    उड़बैत जो

    जेना गुड्डी

    केओ देखनिहार नहि

    केओ पुछनिहार नहि

    झंडा डंडा

    माला भाला

    बन्दूक पेस्तौल

    गुंडा गुरगा

    मीट मुरगा

    होटल बोतल

    रंग रभस

    सभ किछु

    रुपैयेसँ सम्भव

    एहि प्रजातंत्रमे

    चारिटा हीरो

    दूटा हीरो होन्डा पर

    सवारी कसने

    धरधरओने

    अबैये

    पेस्तौल चमकबैत

    सिपाहीकेँ धकियबैत

    (हट…बे)

    निधोख

    बैंकमे हूलि जाइये

    पैघ-पैघ

    तोड़ामे

    करोड़-डेढ़ करोड़

    ठूसि लैये

    अगबे गड्डी

    मुँगबा-लड्डू-ल’ड़ू

    बुनिया नहि छुबैये

    एतबा धर्म रखैये

    दससँ पन्द्रह मिनटमे

    सभ काज फिनिस

    एकदम फिनिस

    कोनो रोक-टोक नहि

    कोनो विरोध नहि

    मनेजरसँ चपरासी धरि

    अपन-अपन निसाँस रोकने

    सम्पूर्ण समर्पणक भावमे

    ठाढ़ तँ ठाढ़े

    लूटि ले…

    प्रजाक रुपैया

    जतेक लुटबेँ

    लूटि ले…

    एहि प्रजातंत्रमे…

    स्रोत :
    • पुस्तक : चानन घन गछिया (पृष्ठ 65)
    • रचनाकार : विवेकानन्द ठाकुर
    • प्रकाशन : विवेकानन्द ठाकुर
    • संस्करण : 2011

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY