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एक सुबह ऐसी होती है जिसे लोगों ने नहीं देखा

ek subah aisi hoti hai jise logon ne nahin dekha

अनुवाद : चंद्रबली सिंह

एमिली डिकिन्सन

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एमिली डिकिन्सन

एक सुबह ऐसी होती है जिसे लोगों ने नहीं देखा

एमिली डिकिन्सन

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    एक सुबह ऐसी होती है जिसे लोगों ने नहीं देखा—
    जहाँ किशोरियाँ दूर की हरित
    उपत्यकाओं में देवोपम वसंतोत्सव मनाती हैं—
    और सारे दिवस नृत्य और क्रीड़ारत
    ऐसी उछल-कूद करती हैं—मेरे लिए जो सदा ही नामहीन—
    अपने अवकाश करती हैं—व्यतीत।
    यहाँ कोमल धुन पर वे पाँव थिरकते हैं,
    जो अब न गाँव की डगर पर पड़ते हैं—
    और न वन में ही जिनका कोई अता-पता—
    यहाँ वे पक्षी हैं धूप के पीछे जो पागल रहे
    पिछले वर्ष जब भरनी निष्क्रिय पड़ी रही
    और वसंत का माथा पड़ा था बंधन में

    ऐसा अद्भुत हृदय मैंने न देखा कभी—
    ऐसी हरीतिमा पर ऐसा वृत—
    और न ऐसी शांत साज-सज्जा—
    मानो वसंत की किसी रात नक्षत्र
    नचाने लगे हों नीलमणि के अपने पात्र—
    और भोर होने तक मनाते हों मधुपर्क—

    तुम-सा नाचना—तुम-सा गाना—
    लोग हों रहस्यमय हरित उपत्यका में
    हर वसंत की सुबह मेरी यही याचना
    होती है—तुम्हारी दूर की, कल्पना से परे
    घंटियों की प्रतीक्षा करती हूँ, मेरी उपस्थिति जो घोषित करें,
    अन्य वादियों में जहाँ कोई दूसरा सबेरा हो।

             
    स्रोत :
    • पुस्तक : एमिली डिकिन्सन की कविताएँ : संचयन (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार : एमिली डिकिन्सन
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 2011

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