एक असफल प्रेम-कहानी

ek asaphal prem kahani

ऋतेश कुमार

ऋतेश कुमार

एक असफल प्रेम-कहानी

ऋतेश कुमार

और अधिकऋतेश कुमार

     

    एक 

    वह दुनिया की सबसे मीठी कहानी की
    नायिका बन सकती थी
    वह दुनिया की सबसे सुंदर लड़की थी
    उसने चुन लिया था अपने लिए
    दुनिया के सबसे अच्छे लड़के को
    जिससे बहुत कम
    बतिया पाती थी वह
    देख पाती थी थोड़ा ज़्यादा
    सुन पाती थी थोड़ा और अधिक
    जितना देख और सुन पाती थी
    जितना बतिया पाती थी
    दिन भर वही तो पगुड़ाता था उसका मन
    यों वह चौबीसों घंटे थी उसके प्यार में

    जब कोई प्रेम में होता है इतना
    ध्यान ही रख पाता है कितना
    उसके प्रेम में होने की भनक
    सरक कर पहुँच गई घरवालों तक
    मुहल्ले में मकान में पड़ोस में फैल गई फुसफुसाहट
    फँसी है किसी लड़के से
    इसके लक्षण तो देखो
    तुरंत कर दिया गया उसका विवाह
    भेज दिया गया दूसरे प्रांत

    एक दिन
    जब उसके पति ने गिनाए अपनी प्रेमिकाओं के नाम
    कुछेक की याद में बहाए आँसू
    बोल गई वह
    दुनिया के उस सबसे सुंदर लड़के का नाम
    जिससे प्यार करती थी
    वह भूल गई थी
    इस देश में केवल पुरुष की हो सकती हैं
    एक से अधिक प्रेमिकाएँ
    पर भावुक क्षणों में कहाँ याद रह पाता है यह सब

    उसके पति ने नहीं की थी कोई प्रतिक्रिया वैसे
    बस उस दिन से थोड़ा बोलता था कम
    मायके से आने वाले टेलीफ़ोन पर बैठ जाता था पास
    चिट्ठियाँ जब लिखती
    कोई न कोई होता था उस पर नज़र गड़ाए

    उसे अपने शहर आने की फिर कभी नहीं मिली इजाज़त
    भाई की शादी, बहन का गौना
    भतीजे का जन्मना
    सब फ़ोन पर उसने सुना
    (तब मोबाइल नहीं था)
    मायके से जब भी आता
    उसे भेजे जाने का निवेदन
    सास, ससुर, ननद या पति
    नहीं तो चचिया, अजिया कोई भी ख़ास
    हो जाते थे बीमार

    यह सब पता चलता है
    उसकी आख़िरी चिट्ठी से
    जो इतने सख़्त पहरे में भी लिख दी गई थी
    और प्रेमी तक पहुँच गई थी

    फिर एक दिन मुहल्ले में आई ख़बर
    नहीं रही दुनिया में वह
    पागल हो गई थी
    आख़िरी दिनों में
    जाने क्या-क्या बकने लगी थी
    उस प्रांत के परिचितों ने सब बताया था
    मरने का कारण नहीं बताया किसी ने

    दो

    मुहल्ले की लड़की के यूँ गुज़र जाने की ख़बर से
    हतप्रभ थे लोग और बेहद उदास भी
    उसका प्रेमी
    घूमता रहा था दिन भर बेचैन
    शाम दोस्तों के बीच 
    जब सब कुछ भूल जाने कोशिश में
    भीतर कर गया कई धार
    बह उठा दर्द
    'यह वह थी कि जिसने बनाया था मुझे ईश्वर
    मुझसे ऊँचा नहीं था किसी का क़द इस सारे जहाँ में
    अब मैं ओछा हो गया हूँ
    घिन्न आती है अपने अपने आप से
    अब मैं ईश्वर नहीं रहा'
    (अब मैं कभी ईश्वर नहीं बन पाऊँगा)

    तीन

    भरा-पूरा था परिवार प्रेमी का
    पत्नी थी 
    एक बिटिया थी
    फिर भी बीच-बीच में उसे 
    घेर लेती थी कोई अजनबीयत
    यूँ रहता था अपने ही घर में
    जैसे बाहर से आया नया मेहमान हो
    और घुलने मिलने का कर रहा हो अभिनय
    एक डायरी होती थी उसके पास हरदम
    खोलकर बैठ जाता था
    गाने लगता था अपनी बेसुरी आवाज़ में
    जीवन से भरी तेरी आँखे...
    छूकर मेरे मन को...
    इन गीतों को गाते
    उसके चेहरे पर छलक जाती थी किशोर मुस्कान
    कोने में अटकी रहती थी तब भी एक उदासी
    अक्सर गाने के बाद
    सहलाने लगता था डायरी में लिखे गीतों के अक्षरों को
    पत्नी ने पूछा था कई बार :
    'इसकी हैंड राइटिंग तो तुम्हारी नहीं लगती?'
    वह चुप रहता था हर सवाल पर
    पत्नी ने मान लिया था इसे उसका स्वभाव
    डायरी वह रख देती थी सँभालकर हमेशा
    डायरी को हाथ में लेकर पत्नी
    अन्यमनस्क हो जाती थी
    उस समय वह जैसे कहीं और चली जाती थी 
    वह कहाँ चली जाती थी उस समय
    कोई नहीं जानता

    चार

    प्रेमिका की मौत की ख़बर
    अब बुझ गई थी
    प्रेमी भी दिखने लगा था सहज-सा
    रह-रहकर छाती को मसलने लगता था लेकिन
    शहर के तमाम बड़े डॉक्टर 
    कर चुके थे उसके सीने के दर्द का इलाज
    पर नहीं समझ पाए थे
    बार-बार कराए गए एक्सरे देखकर भी
    अचानक से क्यों उठता है दर्द उसके सीने में

    स्रोत :
    • रचनाकार : ऋतेश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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