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एहि युग लेल

ehi yug lel

नीरजा रेणु

अन्य

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नीरजा रेणु

एहि युग लेल

नीरजा रेणु

और अधिकनीरजा रेणु

    सुनलियै जे

    एकटा परम्परामे

    मालाक अदला बदली होइ छै।

    वर कनियाँ एक दोसराकेँ

    माला पहिरबै छै।

    इहो देखलियै जे

    माला कनियें काल गमगमा कऽ

    अपन अस्तित्व भारी कर' लगै छै।

    सुगन्धिक कामनासँ

    उल्लसित वर, घरक लोकक नजरि

    मालापर जाइ छै तँ

    झुकल रहै छै वरक गऽरा

    लटकल रहै छै एकटा ढोल।

    अपस्याँत होइत पुत्रसँ

    माय-बाप, आश्चर्यित होइत पूछै छै

    कहिया भेटल ढोल?

    तँ माला अपनै चिकरि उठै छै

    नै सुनै छथि बोल!

    ढोल बजबैत पुत्रसँ

    माय कहैत छै—

    ढोल बजेबे करी पुत्र!

    कारण जे परम्परा यैह कहै छै।

    जे आशीर्वादमे भेटल स्वर

    आदरक पात्र होइ छै।

    परम्पराक नाम सुनितहिं

    ढोल चिकरि उठै छै

    हमर स्वर तेज अछि

    हम नारी-आन्दोलनी-स्वरमे छी।

    हमरा मुक्ति चाही

    परम्पराक मुक्ति लेल

    जे कर' पड़य

    जीबी बा मरी।

    आ, हुअ लगै छै बाटपर

    चिकरा-चिकरी

    ढोल बाज लगै छै—

    हम नारी मुक्तिक

    ढनमनाएल ढोल छी

    परम्परा विरोधी।

    चुप्प रहब नारीक धर्म छियै

    तेँ चिकरब

    मधुश्रावणी, हरितालिका विरोधी

    'न्यू इयर डे' आयोजनी

    पति सेवा परम्परामे छै।

    तेँ पुरुष-कष्ट संयोजिका

    भनसा घर सँ भागि कऽ

    किट्टी पार्टी आयोजिका!

    ढोल फेर कहैये

    हमरा तैयो ने कियो सुनैये

    की करी?

    के कहय जे

    नारी मुक्ति आन्दोलन

    युगक आह्वान छियै

    नवीन युगमे

    चेतनाक स्फूर्त करबाक मन्त्र छियै

    पुरुष विरोधी, आत्म-द्रोही नहि

    गौरीक तपस्या, तपस्याक मर्म-

    बुझयबाक सहायक मार्ग छियै।

    ओना विषपायी शिवकेँ

    ढोल वा डमरूक ताण्डवो अङ्गीकारे छनि।

    मुदा अपनाकेँ नकारि

    मालासँ ढोल बनैत नारी

    कियैक बनैत छी ताड़नकेँ अधिकारी?

    स्रोत :
    • पुस्तक : आगत क्षण ले (पृष्ठ 55)
    • रचनाकार : नीरजा रेणु
    • प्रकाशन : श्री शेखर झा
    • संस्करण : 1997

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