नहीं रोया है पहाड़

nahin roya hai pahaD

खेमकरण ‘सोमन’

खेमकरण ‘सोमन’

नहीं रोया है पहाड़

खेमकरण ‘सोमन’

और अधिकखेमकरण ‘सोमन’

    पहाड़ पर कब नहीं

    क़हर ढाती हैं प्राकृतिक आपदाएँ

    कब नहीं टूटते हैं मकान

    कब नहीं बहते हैं आशियाना

    कब नहीं पहाड़ की स्त्रियाँ डर के वजूद में

    भूल जाती हैं गीत गाना

    कब नहीं मरते हैं बच्चे बूढ़े और जवान

    कब नहीं धँसता है पहाड़,

    पहाड़ पर

    कब नहीं नदियों में बहती हुई लाशें

    अटक कर दिख जाती हैं किसी पर्यटक को

    या स्थानीय जन को

    कब नहीं रोता है पहाड़

    रोते हैं पहाड़वासी

    कब नहीं मिला है एक हजार करोड़ रूपए

    दो हजार करोड़ रूपए

    या कब नहीं मिला है पहाड़ के लिए अरबों-खरबों रूपए

    फिर कब नहीं हुआ पहाड़ की ख़ुशहाली के लिए हवन

    और गबन

    कब नहीं रोया है पहाड़

    कब नहीं पहाड़ के रोने पर

    कर्ता-धर्ताओं को मिला है अवसर

    ब्रेक-फ़ास्ट लंच और डिनर का

    कब नहीं?

    स्रोत :
    • रचनाकार : खेमकरण ‘सोमन’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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