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काला वसंत

kala vasant

गेरि आख्तरबर्ग

गेरि आख्तरबर्ग

काला वसंत

गेरि आख्तरबर्ग

और अधिकगेरि आख्तरबर्ग

    धूप में मौत का आरंभिक स्वाद,

    मधुर उपभोग को शुरू करते हुए,

    गुनगुने खेतों पर प्रवाहित।

    नंगी सड़कों पर पवित्र चरणों से हम जाते हैं

    उसके रुतबे से हम आक्रांत हैं

    और कहीं पराजय भोगी जा चुकी है

    और हर स्त्री प्रस्तुत है

    अपने रक्त को उन काले सूर्यो

    में घुलाने के लिए जो हमारे रक्त की छोरों से उगते हैं

    ओह वसंत—धूप-मादक और गहरे रंगों से आप्लावित।

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 449)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : गेरि आख्तरबर्ग
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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