तू क्यों रोती

tu kyon roti

चंपा शर्मा

चंपा शर्मा

तू क्यों रोती

चंपा शर्मा

और अधिकचंपा शर्मा

    सृष्टि की तू सृजनहारी

    अपनी गाथा सुन ले नारी

    तू बेटी धरती माता की

    तेरी कथा सुनाऊँ भाई

    देख के तेरे दुःख अनेक

    मेरे हृदय में होते छेद

    माँ-बेटी, बहन-बहू

    सदा संतप्त है रहती तू

    रहे शहर या रहे दिहात

    सहने पड़े हैं कष्ट संताप।

    रोती है तू बेटी क्यूँ

    तेरे लिए मैं कष्ट उठाऊँ

    पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाऊँ

    ऊँचे ओहदे पर पहुँचाऊँ

    चलना गौरव से पग भरते

    शान से ऊँचा सर करके

    अपने बल पर करना राज

    सँवरेंगे सब तेरे काज

    चहुँ ओर ही खुशियाँ होंगी

    राहें तेरी रोशन होंगी

    तू चिड़िया मेरे मन भाए

    बाबुल आँगन रुनझुन लाए

    जब जाएगी तू ससुराल

    रो-रो माता हो बेहाल

    देख तुझे हूँ मैं ख़ुश होती

    तू क्यूँ रोती...?

    तूँ क्यूँ रोती मेरी बहना

    क्या करे तू जेवर गहना

    नथनी मानो बनी नकेल

    सब आभूषण परे धकेल

    बन कायर हो हुशियार

    मिलते जीवन के दिन चार

    छोड़ विचार तू होश सँभाल

    सुधरेंगे सब तेरे काज

    कष्ट झमेले सब मिट जाएँ

    खुशियाँ तेरे आँगन आएँ

    प्रगति पथ पर चलती चल

    सदा बदनामी से तू डर

    अब गुलामी का हो फंदा

    किसी पे निर्भर होना मंदा

    बैठी है क्यूँ हो परेशान

    अपनी शक्ति को पहचान

    झाँक के अपने अंदर देख

    पढ़ ले जीवन का संदेश

    आँसू ये तुझे सुहाएँ

    दुःख के झुरमुट में ले जाएँ

    कर प्रयत्न आँसू बहा

    होगा चानन खिला-खिला

    उठ अरी तू हिम्मत कर

    हर किसी से तू डर

    हिम्मत से हिमालय चढ़

    डटकर संकट से तू लड़

    कंधे से तू कंधा मिला

    रच के यह भी खेल दिखा

    खेलों में भी नाम कमा

    हर क्षेत्र में तू पाँव जमा

    आगे बढ़ और पकड़ मशाल

    तेरा क्षेत्र अति विशाल

    ममता तेरी यहाँ बुलाए

    पति धर्म वहाँ ले जाए

    दुविधा में क्यूँ तू है पिसती

    तू क्यूँ रोती?

    तू क्यूँ रोती मेरी माए

    विधना ने ये लेख लिखाए

    तेरे-मेरे हर नारी के

    इसके, उसके, हर सारी के

    गोली के, महारानी के भी

    भोली के भी, सियानी के भी

    मालिन और कुम्हारिन के भी

    धोबिन के, बनजारिन के भी

    'सोहनी' 'हीर' और 'सस्सी' के भी

    'कुंजू' की ही प्रेयसी के भी

    बुआ के भी, बेटी के भी

    बहुओं के भी फूफी के भी

    ब्याहता और कुँवारी के भी

    दुर्गा आद्यकुमारी के भी

    भैरो तेरी राह को रोके

    तेरी हर इक बात को टोके

    शुभ मुहूर्त में तू काज रचाती

    शौक़-शौक़ से बेटा ब्याहती

    दादी बनती नानी बनती

    फिर से तू है बिपता करती

    काले केश धवल हो जाते

    अंग-अंग हैं, शिथिल हो जाते

    कथा सुनाती लोरी देती

    बाँट-बाँट के मीठा देती.

    लाड़-प्यार से इन्हें सुलाए

    रूठे को भी सदा मनाए

    बच्चों को तू पाठ पढ़ाए

    करना तुतली बात सिखाए

    हाथ पकड़ लिखना सिखलाती

    क़लम को फेंके, हँसती जाती

    इक-इक अक्षर कर के सीखें

    भोलेपन से तुझको देखें

    लिख-पढ़ होंगे ये विद्वान

    बनेगा उनसे देश महान

    तेरे लाड़ से हों शैतान

    मानें फिर कोई फ़रमान

    तुझे सताएँ तुझे चिढ़ाएँ

    हुक्के का ये कश लगाएँ

    स्वार्थवश हो पाँव दबाएँ

    हार गले का ये बन जाएँ

    इन पर जाती तू बलिहारी

    ख़ुशी ने तेरी है मति मारी

    तेरे बुढ़ापे की यह लाठी

    पैसे-धेले के यह साथी

    ठगकर तुझसे सब ले जाते

    क्यूँ इनको रोक है पाती

    तू क्यूँ रोती?

    तू क्यूँ रोती पहाड़ी कूंज

    पहाड़ों में है तेरी गूँज

    तेरी बात हैं लोग सुनाते

    लोकगीत हैं व्यथा बताते

    ही पहना, ही खाया

    जीवन भर है कष्ट उठाया

    मर्यादा में है बँधी हुई तू

    गुजरी, बक्कर बालन है तू

    पेड़ों पर है तू जा चढ़ती

    ढोरों का है पालन करती

    अकेले सुबह-शाम है चलती

    भूत-पिशाचों से डरती

    खिल-खिल करती हँसती जाती

    झरने-सी तू बहती जाती

    पहाड़ों में है तेरी गूँज

    तू ही उनकी सुंदर कूंज

    क्यूँ बिन मौत के तू है मरती

    तू क्यूँ रोती?

    सुन ले अब तू अबला नारी

    समझ समय की सार तू सारी

    व्यर्थ गँवा अब जीवन को

    व्यथा सुना दे अपनी सबको

    छोड़ दे अब तू बातें सारी

    क्यूँ है तूने हिम्मत हारी

    सोहे तुझसे है घर-बार

    तेरी रचना यह संसार

    वक़्त मिले तू ताज सँभाले

    बड़े-बड़े तू राज सँभाले

    भले-बुरे की कर पहचान

    व्यर्थ गँवा अपनी जान

    सूरज की तू किरणें देख

    हिम्मत से तू जीना सीख

    भीख नहीं, अधिकार तू जान

    तब ही तेरी हो पहचान

    मन ही मन तू क्यूँ अकुलाती

    तू क्यूँ रोती।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 201)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : चंपा शर्मा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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