टीन का हाथ

teen ka hath

ओम गोस्वामी

ओम गोस्वामी

टीन का हाथ

ओम गोस्वामी

और अधिकओम गोस्वामी

    काल का अजगर

    पसरा अंधा/बेढंगा लंबा

    आदि अंत ना मध्य ही इसका

    मानव दौड़ रहा है इस पर

    बेसुध, गिरता-पड़ता हरदम

    लिख रहा पन्नों पर पन्ने

    काले अक्षर सरसरा रहे

    अत्याचारों का बिल

    बना झरोखा

    इतिहास अनोखा

    सभ्यता सड़क है ऐसी नागिन

    केंचुल पर जिसके/कई आघात हुए हैं

    घावों के कई दाग़ मिट चुके

    पीड़ा से पटी हुई है भाषा

    सतह पर जिसके टिके हुए

    अनंत कथानक

    सभ्यता सड़क बनी है मंडुवा

    टँगा इक सफ़ेद-सा पर्दा

    यादों का चल रहा प्रोजेक्टर

    रील समय की घूमे चरखड़ी

    सत्य के उधेड़न/उधेड़ रही

    जीवन के/कुछ दृश्य जटिल जो

    उभरें/बन परछाइयाँ काली

    फिरे दौड़ता समय का रोलर

    मिटा रहा जो सब हरियाली

    जीवन की सरगम और गाने

    साथ में रुनझुन ख़ुशियों वाली

    स्याह काले तारकोल का लोंदा

    सड़क बनी इतिहास है भोंदा

    आदि अंत मध्य ही इसका

    घड़ी की सुइयों के बाणों पर

    नर्तन करते घड़ियाँ घंटे

    दलदल भरी इतिहास की तख़्ती

    दिशाहीन-सा दौड़े इस पर

    इक पागल

    लिए हाथ में फिरकी

    अनंत हँसी का भरा है झरना

    सड़क फिर रही चौगिर्द पहाड़ के

    पागल के सिर पर हो जैसे बेढब पगड़ी

    सभ्यता सड़क अनंत जलूस इक

    साइकल, तांगे, ट्रक और टैंपू

    बग्घियाँ बसें, रेलें, छुक-छुक

    हॉर्न पौं-पौं

    रुके क़ाफ़िले/कारों के

    शोर की इक बाढ़ चढ़ी है

    भोथरी हो रही सोच की धारा

    पागल होंठों से पीं-पीं बोले

    ख़ुद को गाड़ी जो है समझता

    होड़ ले रहा संग गाड़ी के

    दौड़ रहा है बीच सड़क के

    ताने छाती पकड़ जंजीरी

    तेज़ घूम रही उसकी फिरकी

    पीं-पीं कहकर व्हिसिल बजाता

    संग अनाड़ी गीत है गाता

    रील समय की रुकी है ऐसे

    रुके वाहनों का यूँ रेला

    जीवन बना श्मशान हो जैसे

    या क़ब्रों में सजा हो मेला

    साँस घोट रहा

    प्राणांतक जाम है

    लोहे की मज़बूत ये क़ब्रें

    अनगिन धुआँ विषैला उगलें

    हर मानव अनचाहे पी रहा

    बेबस ज्यों आकाश को देखे

    नाग धुएँ का बैठ रहा निरंतर

    फेफड़ों की बाँबी के अंदर

    पागल व्हिसिल बजाता जाता

    बेसुध गाने गाता जाता

    बोली, अंधी सभ्यता नागिन

    धीरे-धीरे सरसरा रही

    सुस्त-सुस्त सरक रही हैं साँसें

    इधर सड़क के इस बाजू में

    महाकाय 'पीपल के’ नीचे

    छाया में बैठा है पंडित

    छपी लकीरें मुँह पर जिसके

    बना है नक़्शा

    टेक लगाकर साथ तने के

    देखे नाग हवा में उड़ता

    पत्तों को जो डसता पल-पल

    नाग विषैला धुएँ से उत्पन्न

    पत्ते काले हुए ये कैसे

    बूढ़ा पंडित सोच में डूबा

    मैली चादर टिकी है आगे

    जिस पर टिका है हाथ टीन का

    मालाओं के संग पड़ी है पोथी

    टुकुर-टुकुर देख रहा है बूढ़ा

    टीन के हाथ पर लिखी लक़ीरें

    काली गहरी अनंत लक़ीरें

    नीचे जिनके लिखी इबारत

    अपना वर्तमान और भविष्य जान लो”

    जाल बहुत ही बने हैं गहरे

    चेहरे पर चित्रित/मकड़ी का जाला

    झलक रही/चिंता की परछाइयाँ

    चिंता अंतस्थल का विरवा

    आशंकाओं का बढ़ता घेरा

    याद रहा छत टपकता

    भूख बाल बिखेरे बैठी

    शोरोगुल में डूबी ग़ुर्बत

    चाँद ठहर गया है मस्जिद के ऊपर

    मुँह अँधेरे सुनाई देती

    अब सदा ख़ुदाई/अजान पवित्र

    हॉर्न की चिल्ल-पीं अब कानों पर

    गाती गीत प्रातःकाल के

    अफरा-तफरी मची हर जगह

    चीख़ रहा हो जैसे भेड़िया

    शोर मशीनी अति भयंकर

    मारधाड़ मची बहुत है

    मानो तांडव करते शंकर

    मोटे शीशों की ऐनक के पीछे

    क़ैदी दो सवाली आँखें

    बूढ़ा ज्योतिषी बैठा देखे

    ज़हरीला जाम जंग लगा जिसे है

    सभ्यता की जो नक़ल लगाए

    मुँह बनाकर चिढ़ा रहा जो

    भूतकाल के ढाँचे में से

    वर्तमान को झाँक रही है

    इक नज़र जो बनी सवाली

    निर्भाव और खालमखाली

    वर्तमान/आशंकाओं का नाम है दूजा

    आटे दाल की आस के जैसा

    बिलकुल सच्चा, बिलकुल सुच्चा

    वर्तमान

    शायद आज

    हाथ दिखाने आए कोई

    अनिश्चय में पगी आह अनूठी

    किसे दे रहा बिन माँगे सहारा

    टीन का हाथ

    टीन के पंजे की रेखा में

    छपी कथा क्या

    धुँधले शीशों को/वर्तमान की

    पहचान दे कोई

    भविष्य का दावा किस बूते पर

    कांधे पर है लाल उपरना

    पोंछे आँखों का वो कीचड़

    ख़ाली आँखें देख रहीं/पीपल पिछवाड़े

    उजड़े मुखड़े पर बिछा है कचरा

    कूड़े का ढेर

    कह रहा सभ्यता की एक भिन्न कहानी

    नंगे और अधनंगे बच्चे

    दौड़ रहे गंदी नाली में

    कुलबुला रहे हों जैसे कीड़े

    अनमोल उपेक्षित जीवन तड़पे

    आस अधूरी कूड़ा कचरा छान रही जो

    हाथों में चुंबक के डंडे/खोजें लोहा, कील, लिफ़ाफ़े

    साँझ सवेरे जहाँ जल रही/चिताएँ आशा की

    वंचित हाथ/नहीं क़लम-दवातें

    तख़्ती पर नहीं अक्षर मोती

    चिथड़े लटक रहे

    सपना हुआ है कुरता-धोती

    कोमल हाथों की रेखाओं को

    बींधा किसने?

    जंग लगे कीलों की पीड़ा

    कोमल तलवे टीस रहे हैं

    दर्द जगाए काँटों की पंक्ति

    भविष्य देश का कहें जिसे सब

    किसने उस पर रोगन पोता

    काला गाढ़ा अंधकार-सा

    ज्योतिषी बैठा सोच रहा

    शायद पिछले जन्मों का लेखा

    या पिछले कर्मों का लेखा

    थुल-थुल सभ्यता के तारकोल-सा

    चिप-चिप चिपके, खींचे पैरों को

    नाग-दंत से काट रहे हैं

    फूँक रही तन-मन उसका

    अणुबम से निकली/ऊर्जा का झरना

    अफरा-तफरी मची हुई है

    मानव को मानव जाने

    नंगे पाँव अधनंगा मानव

    दौड़ रहा अँधी मंज़िल को पाने

    पानी का इक घूँट मिलेगा

    चंद साँसों के लिए मिले हवा भी

    तड़प रहा है सहमा जीवन

    बेबसी हुआ है सच समय का

    आँखों से ओझल हैं सपने

    मानव सहसा मछली बनकर

    तड़प रहा है गर्म रेत पर

    कड़ाही में भुनता जैसे मक्की का दाना

    घेरे रखें हवा-बवंडर

    जीना दुराशीष बन जाए जब

    अफरा-तफरी मेरा-मेरी, तेरा-तेरी

    गर्मा रहा है आलम/छीना-झपटी का

    निस्सहाय मनुष्यता बेपर्द हो रही

    झूल रहा नंगा स्वार्थ का झंडा

    काले पृष्ठ फरफरा रहे

    सभ्यता की पांडुलिपि है बिखरी

    अपने आप उलट रहे हैं पन्ने

    बारीक लकीरों वाले अक्षर

    जीर्ण पृष्ठों पर जो चित्र बने हैं

    दे रहे जीवन को उलाहने

    ख़ुशियों का अभाव सालता

    मचा रहे हैं यहाँ हंगामे

    सभ्यता की उस सड़क के ऊपर

    झाबे पर कोई झुलाए मक्खियाँ

    पिरता गन्ना बेलन पर है

    धुएँ का वहाँ उठे बवंडर

    पेट में जब सुलगे चिनगारी

    मक्खियों, भँवरों, भिड़ों की भांय-भांय

    सरगम संगीत लगे सुहाना

    नालों की सड़ियल बदबू जब

    सभ्यता का वरदान लगे है

    बिन टाँगों के दौड़ रहा है

    जीवन को जो दे परिभाषा

    अर्थ जिसका उसे पता है

    भविष्य दूजे का बतलाए जो

    अपना वर्तमान है उससे ओझल

    भविष्य अपना वो क्या जानेगा

    जिसने लोरी सुनी नहीं है

    गोद ममता की क्या पहचाने

    सुगंध दूध की जिसे पता है

    टटोले जिसने दूध के झरने

    हाथ अशक्त खोज रहे हैं

    ढेर कूड़ा-कर्कट के यह

    इक काला अँग्रेज़ जो बैठा

    गाड़ी में जो बड़ी शान से

    तीव्र झंझावात-सी बोले अँग्रेज़ी

    चक्रवात के घेरों में फिर

    मानव बहका अमीरी में यूँ

    तूफ़ान है जैसे आने वाला

    इसी सड़क के कुछ आगे ही

    आलीशान-से बैंक बने हैं

    यहाँ नेता फीते काट रहा है

    कुछ आगे विद्यालय में

    बजती है यहाँ रोज़ ही घंटी

    इसी सड़क पर खड़ा भवन इक

    नेता चुनकर जिसमें आते

    भाषण करते नाम कमाते

    सुनहली रेखा तब चमके हथेली पर

    बाजू हवा में लहराए नेता जब

    तब शरमाती टीन के हाथ की रेखा

    दौड़ रहा सड़क पर निरंतर

    व्हिसिल बजाकर जनसमूह के पीछे

    भाषण करे बड़े विचित्र

    लोग कहते ये भी तो था/किसी ज़माने नेता धाकड़

    नशा सत्ता का चढ़ा था सिर पर

    नहीं उतरा है आज तलक भी

    फिरकी उसकी फिरे निरंतर

    फर-फर के फर्राटे मारे

    बीच-बीच में करे/देश को संबोधित

    बहनो और भाइयो!

    क़र्ज़े लेकर लड्डू खाओ

    और देश का मान बढ़ाओ।

    काली आँधी का चला है झोंका

    हाथ टीन का डोले थर-थर

    सभ्यता के रेले-से भिन्न

    कोमल बच्चों के हाथों का कंपन

    खोज रहे हैं ढेर कचरे के

    देश देख रहा हाथ टीन का

    हाथ निहारे उसे निरंतर

    जो कूड़े के ढेर से लौटे

    क़ानून हुआ है बेबस ऐसा

    चक्का जाम हड़ताल हो जैसे

    कोमल लालसा शिला बनी है

    संविधान चिरनिद्रा में डूबा

    गूँज खर्राटों की पाताल तक

    स्वार्थ के रंग उड़े आकाश में

    आज़ादी रही तभी बेरंगी

    बीमार है बचपन जिस देश का

    अतिशयोक्ति के मायने क्या हैं

    या नारों का निरर्थक रेला

    'आज'

    कूड़े का ढेर है जिसका

    'कल' की आशा रखे कैसे

    भूख नग्नता जिसका विरसा

    भाषण उसको भाएँगे कैसे

    बोल लुभावने लगे कसैले

    विष भरे साँप लगते हैं केवल

    थोथे भाषण, मज़ाक़ विषैले

    पीपल के नीचे/टीन का हाथ/मूक खड़ा/देख रहा

    सड़ी-गली/जीर्ण व्यवस्था

    कोमल आशा को मिले रस्ता

    नीले, भूरे शीशे के मनके/एक ढेर पर

    बच्ची के हाथों में दरके/दर्पण का टुकड़ा

    देख रही है सूरत जो अपनी

    बिखरे केश/अनंत उदासी

    भाव-भंगिमा मिट चुकी है

    ही ख़ुशियाँ झलकें उस पर

    थका ज्योतिषी लेता जम्हाई

    देख रहा जमघट वाहनों का

    अपलक निहारे नाग धुएँ के

    डीजल के धुँधुआते रेवड़

    घोड़े बेच सोएँ रखवाले

    सभ्यता वेश्या बनी नगर की

    उठें ठहाके बीच वाहन के

    पैदल दौड़े पथिक भी जो-जो

    खाँस रहे हॉर्न के ताल पर

    काली बलगम निगल रहे हैं

    ज्योतिषी खाँस रहा है धीरे-धीरे

    पोंछ रहा है हाथ टीन का

    अपना वर्तमान और भविष्य जान लो

    पीपल के उस वृक्ष से गिरते

    झरझर करते पीले पत्ते

    लेकर आएँ चिंता के जमघट/अनगिन

    साँझ ढले परछाइयाँ घिर रही

    धीमे-धीमे बढ़ रहा निरंतर

    नवजात पक्षियों के नीड़ों में

    घुस रहा इक भारी अजगर

    चुंबक लगी छड़ी को लेकर

    ख़ूब टटोलें क़िस्मत का कचरा

    माखन की आशा में बचपन

    पानी को मथ रहा निरंतर

    इधर बूढ़े पंडित का हाथ

    बना टीन से, खड़ा अकेला

    जैसे कटघरे में बंद गवाह हो

    उधर भाषण सभा के अंदर से

    बाहर आकर उठाए झंडा

    इस सदी का जादूगर कह रहा

    मेरे पास नहीं/जादू का डंडा

    बेबस और लाचार हर कोई

    ढूँढ़े चमत्कार का रस्ता

    सदी-सदी का मेल दुःखांती

    गोता लगाए काल समंदर

    पागल भागा जाए सरपट

    थका-हारा दौड़ता जाता

    दिशा गुम है तथ्य नदारद

    मूक श्रोता सुन रहा निरंतर

    सड़क सभ्यता की मूक कहानी

    हाथ टीन का बना पहेली

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    देखे बिट-बिट।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 41)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : ओम गोस्वामी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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