ढहाया इस प्रतिमा को अगर

Dhahaya is pratima ko agar

मोहन कुमार डहेरिया

मोहन कुमार डहेरिया

ढहाया इस प्रतिमा को अगर

मोहन कुमार डहेरिया

और अधिकमोहन कुमार डहेरिया

    स्थापित है मेरे हृदय में वर्षों से जिस युवती की प्रतिमा

    ढहाया इसे अगर

    तो क्या मैं उजड़ जाऊँगा

    निस्तेज हो जाएगा मस्त-मलंगों-सा चलने का मेरा शिल्प

    टूट पड़ेगा मुझ पर प्रेम-कथाओं के महानायकों का क़हर

    और तेज़ हो जाएगी मेरे कानों में एक चीख़ की अनुगूँज

    अंगारों-सा दहकेंगी आँखें

    छिड़ सकता है मेरे मस्तिष्क और हृदय में कोई भीषण युद्ध

    अब जबकि स्पष्ट है

    था नहीं उसे मु़झसे सच्चा प्रेम

    जवानी के रोमानी अंधड़ में बहा मैं

    संतुलित पर उसके क़दम

    फिर भी जाने क्यों लगता है

    स्थापित है मेरे हदय में वर्षों से जिस युवती की प्रतिमा

    ढहाया इसे अगर तो क्या मैं बर्बाद हो जाऊँगा

    क्या उजाले से लगने लगेगा डर

    भीड़ भरी बस में बैठूँगा और चलते ही कूद पडूँगा बाहर

    अतीत के कूड़े से बाहर निकलकर

    रेंगेंगे रातों में मेरे निद्रामग्न जिस्म पर कीड़ों-सा प्रेमपत्र

    सूखकर कंठ से चिपक जाएगा तालू

    हाथ काँपेंगे और आँखों में वहशीपन

    अर्द्धविक्षिप्त भिखारी-सा कातरता से देखूँगा आने-जाने वालों को

    माँगता कोई अफ़ीमची मानो उसकी छुड़ाई गई ख़ुराक

    वर्षों से रह रहा हूँ

    प्रेम के महान स्मारकों के खंडहर में चमगादड़-सा

    कितना तो समय गुज़र गया ज़िद और मुग़ालते की एक म्यान में

    ज़ंग खाई तलवार-सा रहते हुए

    अब मेरा भी घर हो

    और हाड़-मांस की सचमुच की एक स़्त्री

    थर्रा उठता पर सोचकर

    स्थापित है मेरे हृदय में वर्षों से जिस स्त्री की प्रतिमा

    ढहाया इसे अगर

    तो क्या फट पड़ेगा मेरे ऊपर स्मृतियों का कोई बादल

    जाग जाएगा पैरों के नीचे दबा कोई सुप्त ज्वालामुखी

    किसी लस्त जटिल शाम सैर के वक़्त

    लेकर तो नहीं चली जाएगी कोई जादूगरनी मेरी उँगली पकड़कर

    हमेशा-हमेशा के लिए

    यह भी हो सकता है

    मुक्त हो जाए मेरी आत्मा दुनिया के सबसे हसीन कोढ़ से।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मोहन कुमार डहेरिया
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए