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धधरा

dhadhra

की सपना देखबाक अधिकार

अहीँ टाकेँ अछि

हमरा नहि

सपना सभ देखैत अछि

चुट्टीसँ लऽ कऽ मनुक्ख तक

की बिसरि गेलियै भंगिनकेँ

जे अपन सपनाक खातिर

मारने रहनि

अपन गोबरक छिट्टासँ

राजा प्रसेनजितकेँ

कि एकलव्यकेँ

जे अपन सपना पूर करबा लेल

काटि लेलक अपन औँठा

भाइ

हम अपन सपना किन्नहु ने बेचब

व्यक्तित्व विसर्जनक एहि दौरमे

अहाँ बरू सेबने रहू

आस्थाक बलत्कृत डोर

बनल रहू पाथरक दास

हम अपन तामसकेँ

मुदा नहि तेजब

ओना

यादि राखब भाइ

पाथर बना दैत छैक

कायर

निकम्मा

भाइ

सपना सपने नहि रह जाय

तेँ धऽ लियऽ बाट हमर

पाथरक माथपर तरुआरिक नोंक पिजा

खुखुरीपर सान चढ़ा

ओकरो बन्हन तोड़ि दियौ

हरेक करेजमे

एकटा धधरा जरा दियौ।

स्रोत :
  • पुस्तक : एखन धरि (पृष्ठ 62)
  • रचनाकार : अंशुमान सत्यकेतु
  • प्रकाशन : नवारम्भ
  • संस्करण : 2018

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