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मरने के बाद

तुम्हारी देह

कहाँ चली जाती है

यह पूछना नहीं चाहिए तुम्हें

क्योंकि

अनंत हैं

उसकी यात्रा की संभावनाएँ

आग में

समुद्र में

आकाश में वह जा सकती है

मिट्टी में, हवा में

बर्फ़ में वह बदल सकती है

स्वर्ग को ताकते हुए

नरक के रथ का इंतज़ार करते हुए

उसकी यात्रा हो सकती है

त्रिकालदर्शी होकर

पीपल के पेड़ के नीचे

अशरीरी होकर बादलों के बीच

उस का पुनर्जन्म हो सकता है

बग़ीचे में प्रेम करते प्रेमियों के रूप में

या तितली की तरह भी

उसका अवतरण हो सकता है

कभी मरने वाली इच्छाओं की तरह

योद्धाओं के संगीत की तरह

वह धरती के चक्कर लगा सकती है

वह देह, जिस की गर्माहट ख़त्म हो गई है

वह क्या करती है

यह पूछना नहीं चाहिए तुम्हें

क्योंकि

अनंत हैं

संभावनाएँ इस बात की कि वह क्या करेगी

रेशम के मुलायम स्पर्श-सी

किसी पुराने गीत की सांत्वना की तरह

आलिंगन करती

रहस्यमय अँधेरे की तरह

ठंडी सुगंध की तरह

खुले हुए एकांत से आकर

वह घर में छिप सकती है

अपने ही पके हुए साँचे में ढलकर

सुराही की तरह

फूलदान की तरह

या मंत्र की तरह

या मिट्टी के दीये की तरह

वह पीढ़े पर जम सकती है

हार पहनकर, मुस्कुराते हुए फ़ोटो की तरह

दीवार में

जादू से ग़ायब होते हुए खरगोश की तरह

स्मृतियों में

अदृश्य हो सकती है

अनंत है

देह की संभावनाएँ

एक निश्चल देह

कहाँ पुल जाती है

चिंता नहीं करनी चाहिए तुम्हें

सिर्फ़ जो ग़ायब हो जाता है

सिर्फ़ जो ग़ायब हो जाती है

लेकिन जो ग़ायब नहीं होते उनकी तरह भी

वह धरती से चिपटी रह सकती है

अनंत हैं

देह की संभावनाएँ।

स्रोत :
  • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 103)
  • संपादक : गिरधर राठी
  • रचनाकार : कवयित्री के साथ अनुवादक के. सच्चिदानंदन, राजेंद्र धोड़पकर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 1994

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