प्रेम के एक दिन मरते ही

prem ke ek din marte hi

दीपक जायसवाल

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प्रेम के एक दिन मरते ही

दीपक जायसवाल

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    कितना अच्छा होता

    प्रेम में आदमी हमेशा डूबा रह पाता

    दर्द में डूबे रहने के बजाए

    धीरे-धीरे मरता हुआ आदमी

    पतझड़ का मौसम

    खारा पानी

    पागल कर देने वाली बेचैनी

    अवचेतन का चेतन बनते जाना

    नसों का फट जाना

    सारे ख़ून में दर्द का फैलते जाना

    मुझे हमेशा से पसंद नहीं थे

    पर कहाँ लिखा है

    जिन चीज़ों को आप पसंद करें

    वे आपको भी पसंद करें

    असीम पीड़ाएँ तैरती ही रहती हैं

    दुनिया का पवित्रतम जल

    किसी प्रेमी की आँख से गिरे आँसू हैं

    जो धरती को उर्वर बनाते हैं

    यह अलग बात है कि

    खेत का एक कोना

    उस वक़्त बंजर भी हो जाता है

    और आसमान से किसी तारे का

    एक हिस्सा टूट कर

    बहुत तेज़ी से

    धरती की तरफ़ बढ़ा चला आता है।

    जितना डूब कर करेगा

    कोई प्रेम

    पीड़ाएँ उसके इंतज़ार में बैठी मिलेंगी

    उतने ही गहरे उसे डुबोने के लिए

    लहरें पूरी ताक़त से

    अपने ही शरीर में हमें

    तली से लगाने लगती हैं

    बहुत से गहरे प्रेम में डूबे

    प्यारे सच्चे लोग

    समुंदर किनारे मिलते हैं

    जिनके साथ ज़िंदगी वादाख़िलाफ़ी

    कर चुकी होती है

    कुछ और दूर साथ चलने के वादे से

    उस दिन पत्थर धातुएँ शंख

    मर जाते हैं थोड़ा-सा और

    थोड़ा-सा और खारा हो जाता है

    समुंदर का पानी

    कहीं कोई एक फूल

    अपनी डाली में लगे-लगे

    ही मुरझा जाता है

    नागफनी में

    उस वक़्त

    एक काँटा और उग आता है।

    लहरें प्रेम में गहरे डूबे हुए लोगों को पहचान लेती हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : दीपक जायसवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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