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दायरे

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हरनाम

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और अधिकहरनाम

    वह बेचारा कभी अच्छा ही था

    यह बेचारा देख लो अच्छा ही है

    कान कब से देखते हैं

    नयन कब से बोलते हैं

    युवावस्था में उभरे अंग लेकर

    शैल पत्थर चुप खड़े हैं

    शैशव के तुतले बोल

    रूप लेकर जन्म धारण कर गए

    मैं वह उदास घड़ी हूँ

    जिसकी सुई खड़ी है मुद्दतों से

    डायल उसका घूमता है

    वह बेचारा कौन था,

    यह बेचारा कौन है?

    बोल नहीं, ये अंग हैं जो

    रेत की तरह तैर चुके हैं

    शब्द हैं, लाख दायरों की तरह

    दूर जाती, एक चुप हैं

    दायरों का अस्तित्व ही है

    मेरी हसरत का सबूत

    नज़र में उभरती गोलाइयाँ

    रूप रचती जा रही हैं

    पास है हर एक संबल

    प्यार की अपनी गोलाई

    सौंदर्य का अपना समर्थन

    सब बेचारे हैं कि कुछ बोलते हैं

    विष नहीं, अमृत नहीं, कुछ घोलते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 219)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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