Font by Mehr Nastaliq Web

हरा रंग

hara rang

महेश वर्मा

अन्य

अन्य

महेश वर्मा

हरा रंग

महेश वर्मा

और अधिकमहेश वर्मा

    हमने साझा कमज़ोरियों पर देर तक बात की,

    अपना चिरा हुआ वक्ष लेकर हम आमने-सामने बैठे रहे देर तक,

    मैंने उसके कठोर ह्दय की शिकायत की

    जो मेरे दुःख समझने से इंकार करता आया है

    उसकी शिकायत शायद मेरी भाषा को लेकर थी

    बीच में हम अटपटेपन के कारण एक दूसरे की बात समझ नहीं पाते थे

    तो भी मैं कहूँगा बातचीत विद्वेष पर ख़त्म नहीं हुई हमने शायद सब

    कुछ समय पर छोड़ने का निश्चय किया

    शायद अफ़सोस में हाथ मिलाए च् की आवाज़ की।

    जब मेरी कविता जाने को उठी तब मैंने उसके लबादे पर ध्यान दिया

    उस पर अलंकारपूर्ण ढंग से कढ़ाई की गई थी

    उसमें कीड़ों ने बारीक छेद कर दिए थे

    वह जैसे सफ़ेद काग़ज़ के मैदान पर चलकर अँधेरे में खो गई

    बीच में मुड़कर जब उसने मुझे देखा तो

    मैंने खिड़की से

    अपना हरा हाथ हिलाया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : धूल की जगह (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : महेश वर्मा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY