छाती तले दरिया

chhati tale dariya

अमरजीत टांडा

अमरजीत टांडा

छाती तले दरिया

अमरजीत टांडा

और अधिकअमरजीत टांडा

    मेरे मार्ग में बहता है एक अनाम दरिया

    उठते-बैठते, चलते-फिरते

    मेरे दिमाग़ में भी बह रहा एक दरिया

    छाती तले, नग्न, धरतीविहीन

    यह दरिया कभी नहीं मरता

    कभी रुकता, आहें भरता

    गर्म साँसों से नए सुर चुनता

    संजीदा संगीत बिखेरता

    किनारों को पोरों में पिघलाता

    जलते अरमानों को जेबों में सँभाले

    सुर्ख़ लकीर बिछाता हुआ

    मैं हर रोज दरिया में गोते लगाता,

    अस्तित्व की नौका के शीश पर

    सूर्य का दीपक जलाकर

    माथे में चितकबरी लकीरें दिखाता

    गगन में श्वेत परी, वर्णमाला के पंख लगाकर आती

    लौ के आगे नतमस्तक

    शब्दों को बीनकर मैं

    एक चमकती तलवार बनाता हूँ

    चारों तरफ़ बिखरे अंधकार से जूझने के लिए

    छाती तले दरिया बहता रहे

    सूर्य का दीपक जलता रहे

    लाल शब्दों से खेलते हुए

    मैंने तय किया है कुछ रास्ता

    मेरे सीने तले बहता दरिया

    कभी उदास नहीं हुआ

    चूँकि उसमें शब्द तैरते हैं ख़ंजरों से

    जल रही मशालें हाथों में सजाकर

    अक्षर जो कभी नहीं मरते

    बादलों से बदलते हैं रूप

    कभी-कभार भर जाता है

    राह का दरिया

    छाती तले का शब्द दरिया

    चक्रवात की धूल के गुबार-सा अमर

    इसके जल में कबीर के दोहे

    और मर्दाने की रबाब तैरती है

    गोविंद सिंह की शमशीर

    और लेनिन-माओवाद बहता है

    मैं भरा दरिया हूँ ठाठें मारता

    कभी भी तुम्हारे महलों को बहा लूँगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 351)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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