छाता

chhata

विनय सौरभ

और अधिकविनय सौरभ

    मुझे एक छाता ख़रीदना था

    एक लंबी दरकार को मैं रोज़ टाल रहा था

    कोई कहता कि आप कैसे चले रहे हैं इस कड़ी धूप में

    कल की ख़बर सुनी, लू से तीन लोग मर गए!

    कहाँ, इसी शहर में?

    मैं चौंका

    वे हँसते रहे, बोले—

    आपको दुनिया की कुछ ख़बर भी रहती है!

    तब जाकर मुझे महसूस हुआ कि

    अब छाता ले ही लेना चाहिए

    पुराने छाते की कमानियाँ बार-बार बिगड़ जाती थीं

    चार-पाँच पैबंद के बाद कपड़ा अब जवाब दे रहा था

    उसे बाहर ले जाने में शर्म आती थी

    दिन गुज़र ही जाते हैं

    गुज़र रहे थे

    लेकिन एक दुपहर में, जब घर लौटा

    तो आँखों के सामने अँधेरा छा रहा था

    पत्‍नी ने कहा कि डॉक्‍टर को सौ-पचास दे दोगे

    मगर एक छाता नहीं ख़रीदोगे

    दरअसल, मैं डरता था छाते की क़ीमत से

    मैंने जीवन में कोई छाता नहीं ख़रीदा था

    पिछला पुराना छाता पिता ने ख़रीदा था

    पुराने छाते के साथ पिता की एक तस्‍वीर थी

    जिसमें छाता चमकता हुआ काला दिखाई देता था

    अब उसका रंग पूरी तरह से धूसर हो चुका था

    एक सुबह पत्‍नी ने भुनभुनाकर कहा

    तुम एकदम गाँव के आदमी ही रह गए

    गमछा सिर पर लिए फिरते हो, देहाती की तरह

    अंतत: मुझे दुकान पर जाना ही पड़ा

    मैं भौंचक रह गया

    वहाँ जाने कितने ही रंग-बिरंगे छाते थे

    जिन्‍हें दुकानदार छतरियाँ कह रहा था

    मेरी जानकारी में छाते सिर्फ़ काले होते थे

    मैं उजबक की तरह वे छतरियाँ देखता रहा

    और भूल गया कि किसी दुकान पर हूँ

    उन छतरियों में कोई एक ही सकता था

    मुझे अपने यहाँ के पुराने छाते का ध्‍यान आया,

    जिसे पिता ने ख़रीदा था

    उस छाते में पिता को मैंने कई बार

    अपने एक दुखी मित्र के साथ दूसरे गाँव जाते देखा था

    दुकानदार ने टोका कि कोई पसंद आया या

    डिजाइनर छाते दिखाऊँ?

    दुकानदार स्‍मार्ट दिखता था

    वह बड़ी तेज़ी से और कुशलता से बोल रहा था

    ज़रूर यह कॉन्‍वेंट में पढ़ा होगा, मैंने सोचा

    मैं पसोपेश में उन रंग-बिरंगी छतरियों को देख रहा था

    उनकी क़ीमतों के अनुमान से

    मेरे अंदर एक भय का भरना शुरू हो गया था

    पर मेरे दिमाग़ में बड़ा छाता था

    पिता के पुराने छाते जैसा

    लेकिन दुकानदार ने वैसा छाता नहीं दिखाया था

    वहाँ सिर्फ़ छतरियाँ थीं

    मैंने थोड़ी दुविधा और संकोच के साथ कहा कि

    मुझे बड़ा छाता चाहिए, काला छाता...

    ओह! कहते हुए दुकानदार झल्‍लाया

    उसने लगभग फेंकते हुए एक छाता दिखाया और कहा कि

    ये ओल्‍ड स्‍टॉक है

    हम ओल्‍ड मॉडल की चीज़ें नहीं रखते

    मैं दुकान की लक़दक़ से दबा जा रहा था

    थोड़े-से हीनताबोध के साथ एकदम दबे हुए स्‍वर में

    मैंने छाते की क़ीमत जाननी चाही

    क़ीमत उस जूते के बराबर थी

    जिसे अपने लिए मैंने,

    लंबी दरकार के बाद ही

    एक फ़ुटपाथ से ख़रीदा था

    पहली बार लगा कि दवाइयों के साथ

    जूते, छाते सभी महँगे हो गए हैं

    मैंने दुकान के बाहर देखा

    जेठ की धूप उन्‍मत्त साँड़ की तरह हहरा रही थी

    उसी समय मुझे पिछली रात का पौने नौ बजे वाला

    ऑल इंडिया रेडियो के समाचार का ध्‍यान आया

    उसमें मॉनसून के बारे में अनुमान था कि वह

    बारह जून के बाद हमारे इलाक़े में जाएगा

    उसी समय धड़धड़ाती हुई दो लड़कियाँ दुकान के भीतर आईं

    उनके हाथों में छींटदार छतरियाँ थीं

    उनके कहने पर दुकानदार ने उन्‍हें टोपियाँ दिखानी शुरू कीं

    टोपियाँ अस्‍सी रुपए से शुरू होती थीं और पाँच सौ तक जाती थीं

    अब उन युवा और दमकती लड़कियों ने कहा कि

    इससे बेहतर दिखाओ, तो यक़ीन मानिए, मैं एक

    नए भय से भर आया

    दुकानदार उत्‍साहित हो उठा

    अब वह मुझसे निरपेक्ष था

    उसके नौकर ने मेरे सामने से

    छतरियों को समेटना शुरू किया

    एकाएक दुकानदार ने नमस्‍ते की

    और कहा कि माफ़ कीजिए

    मैं, आपको, आपकी पसंद का छाता नहीं दे सका

    ज़ाहिर है,

    वह मुझ पर व्‍यंग्‍य कर रहा था

    दुकान की सीढ़ियाँ उतरते हुए सुना

    वह लड़कियों से कह रहा था :

    कुछ लोग अपना और

    दूसरे का वक़्त ख़राब करने चले आते हैं

    लड़कियों के खिलखिलाने की आवाजें आईं

    एक लड़का कोल्‍ड ड्रिंक की दो बोतलें लिए

    दुकान के भीतर जा रहा था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनय सौरभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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