चटकाती स्मृतियाँ

chatkati smritiyan

यतीश कुमार

यतीश कुमार

चटकाती स्मृतियाँ

यतीश कुमार

और अधिकयतीश कुमार

    स्व और पर के बीच दौड़ती-दौड़ती

    धरती से ज़्यादा सहनशील माँ

    पसीने से सने आँचल से

    आँखों की कोर पोंछती है

    सैकड़ों तंग ग्रंथियों के संग

    सूख चुके अश्रुग्रंथ लिए

    ग़ुस्से में तिलमिलाए पिता

    अपने गमछे को थोड़ा और कसते हैं

    माँ को पता है

    नहर होने से ज़्यादा ज़रूरी है

    नहर में पानी का होना

    और पिता जानते हैं

    पहाड़ का सीना नहीं सिकुड़ता

    हम बस हवा हैं

    कभी माँ के पास,

    कभी बाबा के पास

    हमें उड़ना तो आता है

    पर उनके दिल से गुम होना नहीं

    यह भी सच ही है

    कि अखंड बहती नदी को भी

    झरना बनते ही टूटना होता है

    आज दूर, बहुत दूर

    गगनचुंबी इमारतों की बंद ठंडी हवा में

    महसूसता हूँ दोनों का कराहना

    आज स्मृतियाँ नसों को बहुत चटका रही हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतीश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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