चलैत रहू हे मोन
जीबाक अछि/किछु करबाक अछि
तेँ चलैत रहू हे मोन
समुद्र नोनछड़ाह पानि अछि ई लोक
एकरासँ खेत पटयबाक इच्छा नहि करू
बाट चलैत छिटकी लगयबाक अभ्यासी अछि ई लोक
एकरासँ अपन सहयात्री बनबाक अपेक्षा नहि करू
जोंक थिक ई लोक
जकरा शोणित पीबामे हासिल छै महारत
घाटपरक कदैसँ साकांक्ष रहू हे मोन
मुदा मौन भऽ कऽ नहि जीबू हे मोन
एतऽ कायम अछि मंदिर-भावक राज
पीपर-पात बनल अछि लोक
श्रद्धा कही वा भय कही
लीबल छै सबहक घाड़
धारक पानि बनल अछि लोक
बसातक रोंइया-रोंइयामे व्याप्त छै संशय
टुटैत रहबाक परम्परा छै चलि पड़ल
सभहक देहसमाङमे लागि गेल छै मूस
कखनो बेङक मूहसँ
कखनो साँसक थूथुन सँ बजैत छथि सर्पराज
आब आर अधिक
नेतक उपराग नहि सहू हे मोन
किछु कहबाक अछि/किछु करबाक अछि
तेँ चलैत रहू हे मोन
अहाँकेर बाकुटमे अछि ब्योम
डेगक मध्य अछि ई संसार
कुञ्जी थिक सभहक अहाँक ई मस्तिष्क
एना नहि लकबाक मरीज बनू हे मोन
जतऽ होइ व्याकुल सभटा मोन
ओसक पानि चटै जत लोक
गऽरक हँसुलीमे बान्हल होइक जतऽकेर इच्छा
पौतीमे बन्न होइक
जतऽ जीवनक अंतिम लक्ष्यक गहना
जतऽ फागुनमे हिचुकै कंठ
अगहनमे ठेहकै
भूखक महजिदकेर लंठ
ओतऽ अहाँ बान्हू टूटल बान्ह
कान्हपर रखियौ नेहक हाथ
एना नहि आकुल बनू हे मोन
एना नहि व्याकुल रहू हे मोन
ई शरदपूर्णिमाकेर राति
अहाँ छी पान-मखानक जाति
एना छी किये बनौने विधवा-सिउँथ सन रूप
अकारण किये बनल छी द्वीप
अहाँ छी पिरथी चीड़ैत हऽरक फाड़
अफाड़केँ गोइरा बनबैत चास
अहाँ छी सोन्हगर स्वादक कूड़ा
एना नहि फाँकू भाषण-भूजा
अहीँपर अवस्थित अछि भवितव्यक सभटा राग
कोनाकऽ मेटा सब ई दाग
तेँ हरदम चलैत रहू हे मोन
अनोन नहि राखू कोनो कोन
किछु कहबाक अछि/किछु करबाक अछि
तेँ चलैत रहू हे मोन
- पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 37)
- रचनाकार : बिभूति आनन्द
- प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
- संस्करण : 1984
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