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फो: मौं आ रहा है

phoh maun aa raha hai

अनुवाद : दिनेश चमोला

मिं: तु वुं

मिं: तु वुं

फो: मौं आ रहा है

मिं: तु वुं

और अधिकमिं: तु वुं

    रात्रि की छाया में

    जब लोग शांत हैं

    गाँव के द्वार से

    उतरते स्थानों के निकट

    स्वागत में कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से भौंकता रहा

    फो: मौं रहा है

    —लोग कहते हैं

    भौंकना बंद हुआ

    एक आवाज़ सुनाई दी

    मैं रात्रि में

    फैलाता हूँ जाल

    मछली पकड़ने के लिए

    दक्षिणी घाटी की ओर से

    अब फोः मौं रहा है

    सुनता है गाँव का चौकीदार

    फोः मौं की आवाज़

    और खोलता है।

    गाँव के द्वार का

    छोटा फाटक

    पकड़ता है दाएँ हाथ से

    छायायुक्त लालटेन

    और बाएँ हाथ से

    एक डंडा

    झुके हुए कंधों से

    झुके हुए कूल्हों तक

    वह फैलाता है टोकरी

    मछली पकड़ने के लिए

    प्रवेश कर रहा है वह

    गाँव में

    वह आदमी है अथवा शैतान?

    डरने वाले भूत

    या कि विषैले साँप

    उदास रात के

    एकांत अँधेरे में

    यदि वह नहीं पकड़ सका

    मछली गाँव के लिए तो

    मर जाएँगे लोग

    एक शीतल रात

    जब अर्द्धचंद्राकार चाँद

    सिकुड़ जाता है

    ठंड से

    जब बड़े बखार की

    काली छाया में से

    चीख़ते हैं उल्लू

    और गाँव के निकट

    जब गीदड़ बोलते हैं

    गाँव में कुत्ते भौंकते हैं

    फोः मौं के आने का समय हो गया है

    फिर भी

    अन्य समय की तरह

    फोः मौं ने

    नहीं पूछा है प्रवेश करने की घड़ी में

    घड़ियाल बजाओ

    एकत्रित करो लोगों को

    गाँव वालों को ख़तरे से बचाओ

    लुटेरो!

    मुझे सौंप दो उनके हाथों में

    —यह कहना समाप्त करने से पूर्व

    जब वह चिल्लाया

    बंदूक़ों के धुँओं से

    भर गई गाँव की हवा

    और आवाज़ गूँजने लगी

    घाटी और किनारों में

    चाहे कर दिया समाप्त

    फो: मौं ने यहाँ

    लेकिन गाँव वालों के

    दिलों और दिमाग़ों में

    अभी भी गूँज रहा है

    फोः मौं का आना

    हर समय

    रात्रि की छाया में

    जैसे नमस्कार कर रहा हो

    जब गाँव के द्वार पर

    उतरते स्थानों के निकट

    शांत हों लोग

    जब ज़ोर से भौंक रहे हों कुत्ते

    तो यही समझना कि

    फो: मौं रहा है

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 66)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : मिं: तु वुं
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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