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जल उत्सव

jal utsav

अनुवाद : दिनेश चमोला

आचार्य ज़ौजी

आचार्य ज़ौजी

जल उत्सव

आचार्य ज़ौजी

और अधिकआचार्य ज़ौजी

    आओ-आओ

    हमारे पीछे

    यही हमारी रीत है और यही रिवाज

    यह है नया वर्ष

    जब हिलती हैं पताकाएँ

    खेलती हैं स्वच्छ पानी से

    पूर्ण रूप से

    और

    पनपने दो प्रेम लोगों में

    शीघ्र करो

    मेरु की पहाड़ी से

    आती है उमड़ती भीड़

    क्या है यह?

    ढोल का प्रहार

    एक कोलाहल भरी चीख़ के साथ

    नृत्यकार और गीतकार

    बैल भी होते हैं

    उसकी पीठ पर

    सुगंध और लेप का

    बिछा होता है एक ग़लीचा

    उनकी सींगों पर। पादौक के

    खिलते हैं स्वर्णिम फूल

    कितना अच्छा होता

    यदि मैं उसके मस्तिष्क में प्रवेश कर पाता

    मैं करता हूँ प्रार्थना

    फूल से

    शब्दों से

    जिसके कि जो बर्मी शौक़ीन हैं

    दुखी प्राणियों को मुक्त कराने में,

    ताकि उन्हें मिल सके उचित दया

    टगू में

    वर्ष के बीत जाने पर

    दया भरपूर रहती है

    पानी तर-ब-तर होता है

    होता है अत्यंत भव्य

    और लोग

    मनाते हैं

    प्रसन्नता का उत्सव

    कौन-सी भूमि ज़्यादा रेतीली है?

    कौन-सी अत्यधिक प्रसन्न?

    बर्मी करते हैं विचार

    हर्ष से

    जन्म के विस्तार पर

    और

    मनाते हैं नया वर्ष

    एक ख़ुशी भरा माह

    जब गिरते हैं नए पत्ते

    फूटती हैं नई कोंपलें

    शीतल पवन बहती है

    यह समय होता है

    स्मृतियों का

    जब कूजती है कोयल

    मीठे स्वर में

    ऊँचे पेड़

    पानी उत्सव के समय

    उसका संगीत प्रवेश कर

    बना देता है

    मेरे हृदय को

    एक पवित्र गुफा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 40)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : आचार्य ज़ौजी
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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