रक्तकमल

raktakmal

भवानीप्रसाद मिश्र

और अधिकभवानीप्रसाद मिश्र

    सुनती हो

    मेरी बहन आत्मा

    किसी नदी के हरहराने जैसी

    यह आवाज़

    यह रगों में दौड़ता हुआ

    मेरा ख़ून है

    या

    सुदूर

    अथवा

    पास के

    किस ओर है

    छोर

    इस शोर का

    समझ में नहीं आता

    कभी भीतर उठता है

    कभी उठने लगता है

    पाँवों के पास

    कभी सिरे पर दुनिया के

    कभी ओत-प्रोत

    करते हुए दुनिया भर को

    और फिर भी बार-बार

    लगता है

    कि हो हो

    यह मेरी रगों में दौड़ता हुआ

    मेरा ख़ून ही है

    ख़ून मेरा

    जिसमें मेरी ख़ुशी

    डूब गई है

    और मन का

    रक्तकमल जिसमें

    दिन भर भी

    खिला नहीं रह सका है

    शायद मेरी रगों में

    यह ख़ून

    इसी शर्त पर

    बह सका है

    कि ख़ुशियाँ डुबाई जाएँगी

    बिखराए जाएँगे दल

    रक्तकमल के

    शाम आने के भी पहले

    बता सकती हो तुम

    मेरी बहन आत्मा

    कि कहीं

    तट भी है इस नदी के

    या नहीं

    तट जहाँ से बिना तैरे

    पार जा सके मेरी ख़ुशी

    पाँव-पाँव जा सके

    जहाँ से मेरा रक्तकमल

    किनारे के उस पार

    शांत जल के थमे-से

    सरोवर में

    ख़ुशी को

    बारहा मना किया था

    मैंने

    कि जाए वह

    मेरे ख़ून की धारा से

    कहने अपना दुःख

    मगर वह गई

    और अब खा रही है वहाँ

    डुबकियाँ

    बता सकती हो तुम

    मेरी बहन आत्मा

    ख़ुसी का ख़ून से

    क्या संबंध है

    क्यों मना करने पर भी

    जाती है वह

    उसे बताने

    अपना दुःख

    जबकि यों

    वे अलग-अलग रहते हैं

    क्यों है मगर उन्हें मिलकर

    रोना

    ख़ून और ख़ुशी

    दुःख में सगे हैं

    मगर ख़ुशी को

    तैरना

    नहीं आता

    और दुःख को थमना

    बहन आत्मा

    वह जगह बताओ

    कम हो जहाँ ख़ून गहराई में

    और पार कर सके

    जहाँ से उसे ख़ुशी

    बिना तैरे पाँव-पाँव

    और बिखर जाए

    जहाँ तूफ़ानी लहरों में

    रक्तकमल

    स्रोत :
    • पुस्तक : मन एक मैली क़मीज़ है (पृष्ठ 128)
    • संपादक : नंदकिशोर आचार्य
    • रचनाकार : भवानी प्रसाद मिश्र
    • प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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