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बीसवीं सदी

bisvin sadi

अनुवाद : सुरेश सलिल

नाज़िम हिकमत

अन्य

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नाज़िम हिकमत

बीसवीं सदी

नाज़िम हिकमत

और अधिकनाज़िम हिकमत

    ‘जानेमन, आओ अब सो जाएँ

    और जगें सौ साल बाद...

    नहीं,

    मैं भगोड़ा नहीं

    अलावा इसके; अपनी सदी से मैं भयभीत नहीं।

    मुसीबतों की मारी मेरी यह सदी

    शर्म से झेंपी हुई

    हिम्मत से भरी हुई मेरी यह सदी

    बुलंद और दिलेर...

    मुझे कभी अफ़सोस नहीं हुआ कि क्यों इतनी जल्दी पैदा हो गया।

    बीसवीं सदी में मैं पैदा हुआ

    फ़ख़ है इसका मुझे,

    जहाँ भी हूँ अपने लोगों के बीच हूँ; काफ़ी है मेरे लिए

    और यह; कि एक नई दुनिया के लिए मुझे लड़ना है...

    ‘जानेमन, सौ साल बाद...

    मगर नहीं, पहले ही उसके; और सब कुछ के बावजूद

    मरती और फिर-फिर पैदा होती हुई मेरी सदी

    मेरी सदी, जिसके आख़िरी दिन ख़ूबसूरत होंगे

    सूरज की रोशनी जैसी खुल-खिलेगी मेरी सदी

    जानेमन, तुम्हारी आँखों की तरह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : देखेंगे उजले दिन (पृष्ठ 78)
    • रचनाकार : नाज़िम हिकमत
    • प्रकाशन : मेघा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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