जन्मदिन

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निर्मला गर्ग

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और अधिकनिर्मला गर्ग

    रेस्तराँ के बाहर वृक्ष के खोखल में झाँकी सजी है

    आज ईसा मसीह का जन्मदिन है

    घास पर लेटे हैं शिशु ईसा

    दाईं ओर मरियम खड़ी हैं

    उनकी पनीली आँखों में ममत्व भरा है

    बाईं ओर ज़मीन पर जोसेफ़ बैठे हैं

    तारे को देखकर तीन राजा आए हैं उपहार लेकर

    क्यूपिड आसमान में लटका जातक निहार रहा है

    भेड़ बकरियाँ भी खड़ी हैं पास

    शिशु ईसा को बधाई देतीं

    कोच्चि में घरों और दुकानों के आगे

    काग़ज़ के क़ंदील टँगे हैं

    रात में शहर जगमगा उठा है रोशनी से

    वैसे ही जैसे उत्तर भारत दीवाली में जगमगाता है

    ईसा की झाँकी जन्माष्टमी की तरह ही

    जगह-जगह सजी है

    मुझे दरभंगा की जन्माष्टमी याद रही है...

    हम बच्चे कृष्ण की मूर्ति के पीछे चादर पर अबरक छिड़क कर

    पहाड़ बना देते थे

    उस पर शंकरजी को बिठा देते

    उनकी जटा से पानी की धार निकालने का बंदोबस्त भी कर देते

    घास उगी मिट्टी काट लेते

    घोड़ा हाथी भालू ख़रगोश उस पर सजा देते

    मुझे याद है कुन्नी को हम कई रंगों में रंगते थे

    हरी कत्थई पीली

    मूर्ति के आस-पास उसी की सज्जा होती

    झाँकी तो मिलती जुलती है पर विचारों में कृष्ण और ईसा में

    ख़ासी असमानता दिखती है

    हालाँकि सामाजिक स्तर उनका लगभग बराबर है

    ईसा में जहाँ गहरी करुणा और सेवाभाव है

    कृष्ण एक सुलझे हुए राजनायिक हैं।

    ईसा उन्हें भी माफ़ कर देते हैं

    जिन्होंने उनके ख़िलाफ़ षडयंत्र रचे

    जबकि कृष्ण अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देते हैं

    फिर वे अन्याय चाहे अपनों ने ही किए हों

    और ऐसे युद्धों में सब जायज़ है

    कृष्ण हमें यह भी बताते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दिसंबर का महीना मुझे आख़िरी नहीं लगता (पृष्ठ 80)
    • रचनाकार : निर्मला गर्ग
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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