चिड़िया का गीत

chiDiya ka geet

प्रकाश

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चिड़िया का गीत

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    एक हरे वृक्ष पर पीली चिड़िया आती थी

    चिड़िया एक जंगल से उड़कर आती थी

    नीचे अपनी साँवली परछाई के ऊपर

    अपने पीलेपन को

    आकाश के नीले में गाती थी

    एक पुकार से वृक्ष की मटमैली जड़

    सिहर कर उसको देखती थी

    अगली बार चिड़िया जड़ के मटमैले को गाती थी

    उसे सुनकर एक पकता हुआ फल सुगंधित हो जाता था

    पकता हुआ फल लाल और रस को पुकारता था

    तुरंत चिड़िया लाल और रस को गाती थी

    गाने में सुगंध जो क्षण भर पहले छूटा

    तत्क्षण सुगंध को भरपाई में

    दो बार गाती थी

    एक बेरंग हवा वहाँ से गुज़रती थी

    वृक्ष बाहर थोड़ा हिलता था

    चिड़िया थोड़ी देर बेरंग, बाहर और हिलने को गाती

    चिड़िया का गाना सब सुनते थे

    अचानक चिड़िया को लगता था

    कि वह ख़ुद का गाना सुनती थी

    फिर चुप होकर वह ख़ुद को सुनने लगती थी

    फिर बिन बोले अपने सुनने को गाती थी

    वह एक चिड़िया जितने को जितना गाती थी

    उसी एक में उतनी चिड़ियाएँ

    उतनी और उतर आती थीं

    आख़िर में भर कर सब चिड़ियाएँ सब में

    एक साथ चुपचाप सुनने का गीत गाती थीं!

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रकाश
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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