भ्रमणगाड़ी-4

bhramangaDi 4

अनुराधा महापात्र

अनुराधा महापात्र

भ्रमणगाड़ी-4

अनुराधा महापात्र

और अधिकअनुराधा महापात्र

    ट्रेन के आग के दृश्य से बार-बार चढ़ता है नशा

    बच्चों की फ़िल्म में बचपन का ख़ून होता है आज

    आगंतुक के मुँह पर धड़ से दरवाज़ा बंद करना

    घर पाकर और बढ़ते हुए किराए को जानकर

    उनके मच्छरों के रक्त का स्वाद समझना ही पड़ता है—

    वे अब इतना क्रिएटिव नहीं रहे सोचकर

    उनके साथ और साथ-साथ चलना भी नहीं चाहते तुम

    और तुम्हें कराना भी पड़ता है भद्रता-बोध

    तुम्हें भी गुपचुप हिसाब करना पड़ता है—सिक्यूरिटी का

    किरासिन को बदलकर गैस चूल्हे का

    बैंक सेविंग देखकर अपनी हर माह

    छोटा परिवार लिए अपनी तरह रहने का,

    बनगाँ लोकल की भाषा—इक्कीसवीं सदी की बाङ्ला नहीं है।

    जलकुंभी के बीच अतर्कित तैर उठते

    कटे हुए मुंड की भाँति चाहना भी अब तुम्हारी नहीं रही—

    अब हर सुबह पति के चुंबन से अचानक

    ऑटो पर कूदकर चढ़ना

    यूनिवर्सिटी में—नए साल का

    साहित्य का क्लास है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 99)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवयित्री के साथ अनुवादक समीरबरन नंदी और प्रयाग शुक्ल
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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