बशर्ते मैं चलती रहूँ

basharte main chalti rahun

अनुवाद : वर्षादास

वर्षा दास

वर्षा दास

बशर्ते मैं चलती रहूँ

वर्षा दास

और अधिकवर्षा दास

    किसी ने मुझे यहाँ छुआ

    तो किसी ने वहाँ,

    बातें पुरानी हैं, फिर भी

    सारे स्पर्श, आज भी

    स्पंदन जगाते हैं

    अतीत की अनुभूति से

    रोमांचित करते हैं।

    जिन्होंने छुआ था

    वे एक-एक करके चले गए,

    इस दुनिया में कहीं दूर

    या दुनिया के उस पार

    दूर, सुदूर।

    किसी ने कहानी सुनाई थी

    तो किसी ने कविता,

    किसी ने मिट्टी की सुगंध फैलाई थी

    तो किसी ने आसमां की लालिमा।

    मैंने सपनों को सजाया, सँजोया,

    सब कुछ भाया,

    पर फिर ऐसी आँधी चली

    कि सब कुछ उड़ गया

    तिनकों की तरह तितर-बितर।

    उनमें से कोई चुभा

    तो किसी ने सहलाया।

    अंत में रह गई रिक्तता

    बहुत गहरी

    चारों ओर पसरती

    आतम को टटोलती

    रिक्तता।

    मध्य में क़ैद मैं,

    शून्य में

    सूनेपन में

    दो स्वरों के बीच की

    नीरवता में।

    फिर अचानक एक दिन,

    अनायास, अकारण

    भीतर झाँका तो पाया

    कि कुछ भी तो नहीं खोया!

    अतीत से ही वर्तमान है,

    उसी से ‘आज’ आज है,

    अधिक सुनहरा

    पहले से उजला

    काफ़ी सुलझा।

    बस, चलती रहूँ

    साँस लेती रहूँ

    रास्ता दौड़ा-दौड़ा आएगा।

    उन्हीं सुगंधों और रंगों से

    आने वाले कल को सजाएगा।

    बशर्ते

    मैं चलती रहूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक गुजराती कविताएँ (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : वर्षा दास
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2020

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