Font by Mehr Nastaliq Web

बंदरगाह

bandargah

मनीषा जोषी

मनीषा जोषी

बंदरगाह

मनीषा जोषी

और अधिकमनीषा जोषी

    वैसे तो सूना पड़ा रहता है यह बंदरगाह

    जैसे हो कोई निर्जन कोठार धान रखने का

    पर बदल जाता है हवा का रुख़

    कुछ दिन पहले से ही

    जब आने वाला होता है यहाँ कोई जहाज़।

    बहुत बड़ा नहीं है यह बंदरगाह

    पर इतना छोटा भी नहीं कि

    दे सके सपने

    यहाँ रहती स्त्रियों को।

    इंतज़ार रहता है इन्हें जहाज़ का

    जिसमें आते हैं इनके सौंदर्य प्रसाधन

    और कुछ पुरुष।

    खींच लेता है जहाज पूरे गाँव को

    अपने अवैध प्रभाव में।

    बंदरगाह पर जहाज़ का आना

    जैसे किसी विशालकाय मृत मछली का

    पानी की लहरों के साथ

    किनारे तक बहते चले आना।

    बहुत भ्रामक होती है

    मृत मछली की शांति

    ठीक इस भूले बिसरे बंदरगाह की तरह

    जहाँ जहाज़ के कमरों में क़ैद रखा रहता है

    एक अशांत, नौजवान समुद्र।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीषा जोषी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY