बकरी और हत्यारा

bakri aur hatyara

ललन चतुर्वेदी

ललन चतुर्वेदी

बकरी और हत्यारा

ललन चतुर्वेदी

और अधिकललन चतुर्वेदी

    हत्यारे के खूँटे में बँधी बकरी

    बड़े चाव से खा रही है घास और पत्तियाँ

    पेट भरने के बाद आराम से बैठकर पगुरा रही है

    बीच-बीच में स्वयं से बोल-बतिया रही है

    हत्यारा सोचता है—वह मिमिया रही है

    बकरी हत्यारे की भाषा नहीं समझती

    जिस तरह हत्यारा नहीं समझता बकरी की भाषा

    हत्यारा अगर समझ लेता बकरी की भाषा

    तो अपना चाकू फेंक देता अंगुलिमाल की तरह

    बकरी अगर समझ लेती हत्यारे की भाषा तो वह

    अपनी हत्या के पहले ही हदस से मर जाती

    हत्यारा बकरी में मांस देखता है

    और बकरी हत्यारे का प्यार देखती है

    वह समझती है कितना प्यारा है यह आदमी

    जो उसे देता है हर दिन हरा-हरा, ताज़ा चारा

    हत्यारे के मन में हरदम बकरी के भाग जाने का भय है

    इसीलिए वह रस्सी से बाँध,

    बकरी को बंद कर रखता है घर में

    बंदिनी बकरी फाटक के अंदर एकाध बार मिमियाती है

    हत्यारा समझता है बकरी डर कर चिल्लाती है

    उसे यह कहाँ पता कि बकरी को मौत का बिल्कुल ख़ौफ़ नहीं है

    हत्यारा बकरी की भाषा अंत तक नहीं समझ पाता

    बकरी हत्यारे के प्यार को अंत तक नहीं भूल पाती।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ललन चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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