बैठ लो

baith lo

कीर्ति चौधरी

और अधिककीर्ति चौधरी

    बैठ लो थोड़ा आकर

    बात कुछ हम भी तो कर लें

    जाने कितनी बातें हैं

    अभी तो कहने को बाक़ी

    भरी-सी इस दुनिया के बीच

    भूल अपनापन भी जाना

    भला क्या अच्छी आदत है?

    अरे, सबकी सुनते मन में

    ज़रा कुछ अपने को देखो

    सुनो तो, मन क्या कहता है

    किस दिशा इंगित करता है।

    जाने दो यह व्यर्थ पुकार

    अभी से कैसी तुमको हार।

    कि लगता जीवन जैसे भार

    कोई साथ यहाँ देगा

    कोई दुख को लेगा बाँट

    महज़ बातें करने के लोग

    आएँगे जीवन भर काम

    अपना और पराया अन्य

    रोए मुस्काएगा साथ

    भरोसा अपने ही दम का

    सहारा अपने ही तन का

    यहाँ पर होता आया है

    इसलिए मेरी बात सुनो

    उठो जी भर खुलकर हँस लो

    छोड़ दो सब झगड़े झंझट

    दूसरे लोगों की परवाह

    ज़रा अपने तन पर दो ध्यान

    ज़रा मन को तो दो स्थान

    और देखो तुमने क्या किया

    अभी क्या-क्या करना बाक़ी

    तरीक़े यही यहाँ पर हैं

    उठाते जो जीवन ऊपर

    अगर रहना है दुनिया में

    यहीं इन इंसानों के बीच

    ज़रा कुछ ऊपर उठकर रहो

    ज़रा कुछ काम विशेष करो

    नहीं तो जीते तो सब लोग

    यहाँ पर साँसों का यह क्रम

    चला जाता अंतिम क्षण तक

    और अब ऊब रहे हो तुम

    ख़ैर जाने दो करो ख़तम

    फिर किसी अगले दिन ही सही

    बात कर लेंगे हम तुम बैठ

    और देखो दरवाज़े पर

    हो रही शायद दस्तक है

    खोल दो दरवाज़ा जाकर

    पुकारा किसी दोस्त ने है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : समग्र कविताएँ (पृष्ठ 147)
    • रचनाकार : कीर्ति चौधरी
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2010

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