बचपन की बारिश

bachpan ki barish

मुसाफ़िर बैठा

मुसाफ़िर बैठा

बचपन की बारिश

मुसाफ़िर बैठा

और अधिकमुसाफ़िर बैठा

    बचपन की बारिश में यादों का दख़ल

    अब भी जीवन में बचा बसा है इतना

    कि भींग जाता है जब तब

    उसकी गुदगुदी से सारा तनमन

    मेरे समय के नंग-धड़ंग बचपन में

    बारिश का भीगा मौसम

    गाँव भर के कमउमरिया या कि

    मेरे हमउमरिया बच्चों के लिए

    बेहिसाब मस्ती का उपादान बन आता था

    उन दिनों टाट मिट्टी और फूस के ही

    घर थे अमूमन सबके और

    फूस खपरैल की बनी होती थी छप्पर

    गहरी तिरछी ढालों वाली

    छप्परों की ओरियानी से फिसलकर

    जो मोटी तेज़ जलधार बहती थी छलछल धड़धड़

    उसके नीचे बच्चों का नहाना आपादमस्तक

    मौजों के नभ को छू लेना बन जाता था जैसे

    छुटपन की उस गँवई मस्ती पर

    टोक-टाक या पहरा भी नहीं होता था कोई

    ऐसा निर्बंध आवारा मेघ आस्वाद पाना

    उन नागरी बच्चों को कहाँ नसीब

    जिनके बचपन के प्रकृति-भाव को

    हिदायतों औ’ मनाहियों की बारिश ही

    सोख लेती है काफ़ी हद तक

    और कुछ बूँद बारिश से भी संग करने को

    ललचता-मचलता रह जाता है शहरी बचपन

    हमारे बचपन में हमारी गँवई माँएँ भी

    होती थीं हर माँ की तरह फ़िक्रज़दा ज़रूर

    मगर हम बच्चों के भीगने पर नहीं

    बल्कि तब

    जब कई-कई दिनों तक

    लगातार होती आतंक में तब्दील हो गई बारिश

    थमने-थकने का नहीं लेती थी नाम

    माँ की चिंता भी तब

    चावल के उफनाए अधहन की तरह

    बेहद सघन और प्रबल हो आती थी

    जब घर का छप्पर बीसियों जगह से रिसने लगता

    और सिर छिपाने को बित्ता भर जगह भी

    नहीं बचती घर के किसी कोने अंतरे में

    जर जलावन चूल्हे तक की

    ऐसी भीगा पटाखा सेहत हो जाती

    कि हमारे घर भर की सुलगती जठराग्नि को

    बुझाने की इनकी ख़ुद की ज्वलन शक्ति ही

    स्थगित हो जाती

    माँ मेरे जैसा महज़ ख़ुदयक़ीनी नहीं थी

    दुख एवं सुख की हिसाबदारी में

    ऊपरवाले का हाथ होने में

    भरठेहुन विश्वास था उनका भी

    हर परसोचसेवी इंसान की तरह

    बेलगाम आँधी पानी से

    बरसती इस आफ़त की बेला में

    माँ भी जलदेवता का गुहार लगाती—

    अरर मरर के झोपरा

    अब बरसा दम धरा

    हे गोसाईं इन्नर देबता

    तू बचाबा हम्मरा

    और भी जाने क्या क्या बदहवास

    गँवई देसी ज़ुबान में बुदबुदाती

    इस आई बला को टालने का

    कोई और टोटका भी करती जाती

    हम बच्चे बड़े कौतूहल और आशा संचरित निगाहों से

    माँ के इन संकट निरोधक उपचारों के

    बल और फलाफल का

    रोमांच आकुल हो बेकल इंतज़ार करने लगते

    तब मुझे कहाँ मालूम था कि

    मौसमविज्ञानी की भविष्यबयानी और

    कथित वर्षा देवता की कृपा अकृपा

    दोनों ही साबित हो सकते हैं अंततः

    सिर्फ़ मनभरम और छलावा

    बारिश से अब भी है साबका

    पर बचपन की बारिश में

    केवल भींगता था उमगता मन

    अबके होती बारिश में

    भींगता है अंतर्मन भी

    मथती जब बारिश की बाढ़।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मुसाफ़िर बैठा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए