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बछेड़े का जन्म

bachheDe ka janm

फेरेन्त्स यूहाश

अन्य

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फेरेन्त्स यूहाश

बछेड़े का जन्म

फेरेन्त्स यूहाश

और अधिकफेरेन्त्स यूहाश

    जब फूट पड़े झाड़ी में मई के गुलाब

    और ऐल्डर और नीलक के फूल खिलखिलाने लगे—

    घोड़ी तैयार थी ब्याने को

    उसने किया बार-बार विश्राम, चली लचक कर।

    एक छोटा बच्चा उसे घुमा लाया हौले-हौले

    फूल-भरे खेतों में, गाता हुआ,

    लौटे जब थके-माँदे वे

    बैठा था चाँद गगन की नीली कूबड़ पर।

    झाग फूट आया, वह सिहरी

    अपनी घुड़साल में नरम पुआल पर

    फूले पेटों वाली अधलेटी गायें

    उसे निहारने लगीं छोड़ती उसाँसें।

    इस तरह जब लगे ऊँघने भूसे के ढेर भी,

    सप्तर्षि चल पड़े दक्षिण की ओर,

    उसने जना अपना बछेड़ा। फिर घंटों

    गीली बंद आँखों और मुख पर उसे

    चाटती रही वह दुलार से।

    वह नवजात रहा लेटा

    माँ की बग़ल में, तकियों के फ़ाहे-सा;

    ऐसी सुंदर पुआल बिछी होगी कब कहाँ—

    कब सोई होगी ऐसे बर्फ़, दूध!

    लाल टोप-धारे चला आया भोर

    हैलो! कहा और चल दिया सपाटे पर।

    खड़ा हुआ बछड़ा गँठीली-सी टाँगों पर

    चला लड़खड़ाता-सा, पानी पर झाग-सा लहराता।

    और जब सवेरे ने खिड़की पर

    दस्तक दी अपनी नीली-सी नाक से,

    उसे भाँप, बछड़े ने टहोका अपनी माँ का पेट

    और गीले थूथन से पीया दूध।

    पत्ते फुसफुसाने लगे आपस में,

    मुदित मुर्गि़यों ने चोंचों से खोजे दाने,

    और उधर ऊपर ईर्ष्या से मुरझाए

    स्वर्ण पँखुड़ियों वाले तारे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दस आधुनिक हंगारी कवि (पृष्ठ 82)
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक गिरधर राठी, मारगित कोवैश
    • प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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