बच्चा

bachcha

अरे, ये कैसा बच्चा है

सो रहा गहरे इत्मिनान से

इतने हो-हल्ले के बीच

मुँह में दूध की मशालनुमा बोतल

आँखें गहरी तृप्ति से बंद

पीया हो जैसे नई तासीर का दूध

झूलता प्रसन्नचित्त ऊपर-नीचे

नारे लगाती माँ के गले से बँधी चादर के साथ-साथ

किसका बच्चा है यह

आस-पास टोहती बनैली गुर्राहटों के बावजूद

मुस्कुरा रहा नींद में बेफ़िक्र

लटका है जबकि एक खाई के अंदर उसका आधा शरीर

जबसे देखा इसे

ख़ुशनुमा ढंग से मेरे कानों में फुसफुसा रहा इतिहास

पता नहीं किस करवट बदलेगा देश का मौसम

कैसे करूँ इस बच्चे का विश्लेषण

बूढ़ा हो गया मैं

देख चुका जाने कितने बच्चों को सोते हुए

कोई चाहता माँ के आँचल के नीचे की नींद

किसी को पसंद अब्बा के कंधों पर उसकी थपकियाँ

बहुत सारे सो नहीं पाते

परियों की कहानियाँ सुने बिना

लेकिन यह कैसा बच्चा है

शोरगुल भंग नहीं कर पा रहा इसकी एकाग्रता

कड़कड़ाती ठंड से अविचलित शरीर

तानता बीच-बीच में मुट्ठियाँ

माँ ही नहीं लड़ रही मानो

लड़ता नींद में वह भी किसी राक्षस से

वाह, मेरे बच्चे

माँ के सरोकारों से जुड़ने

लोरी के शब्दकोशीय अर्थ को ध्वस्त करने

नींद को नया शिल्प देने के लिए

बहुत-बहुत बधाई।

स्रोत :
  • रचनाकार : मोहन कुमार डहेरिया
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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