Font by Mehr Nastaliq Web

बाबूजी के सपने

babuji ke sapne

कौशल किशोर

अन्य

अन्य

कौशल किशोर

बाबूजी के सपने

कौशल किशोर

और अधिककौशल किशोर

    बाबूजी क़लम घिसते रहे काग़ज़ पर

    ज़िंदगी भर

    और चप्पल ज़मीन पर

    वे रेलवे में किरानी थे

    कहलाते थे बड़ा बाबू

    उनकी औक़ात जितनी छोटी थी

    सपने उतने ही बड़े थे

    और उसमें मैं था, सिर्फ़ मैं

    किसी शिखर पर

    इंजीनियर से नीचे की बात

    वे सोच ही नहीं पाते थे

    ऐसे ही सपने थे बाबूजी के

    जिसमें वे जीते थे

    लोटते-पोटते थे

    पर वे रेल-प्रशासन को

    अन्याई से कम नहीं समझते

    उनकी आँखों पर चश्मे का

    ग्लास दिन-दिन मोटा होता जाता

    पर पगार इतनी पतली

    कि ज़िंदगी उसी में अड़स जाती

    इसीलिए जब भी मज़दूरों का आंदोलन होता

    पगार बढ़ाने के लिए हड़ताल होती

    ‘ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद’ करते वे अक्सर देखे जाते

    उनके कंधे पर शान से लहराता

    यूनियन का झंडा

    लाल झंडा!

    एक वक्त ऐसा भी आया

    जब सरकार ने छात्रों की

    बेइंतहाँ फ़ीस बढ़ा दी

    फिर क्या?

    फूट पड़ा छात्र आंदोलन

    मैं आंदोलनकारी बाप का बेटा

    कैसे ख़ामोश रहता

    कूद पड़ा

    मैं भी करने लगा ‘ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद’

    मेरे कंधे पर भी लहरा उठा झंडा

    छात्रों के प्रतिरोध का झंडा!

    बाबूजी की प्रतिक्रिया स्तब्ध कर देने वाली थी

    आव देखा ताव

    वे टूट पड़े मेरे कंधे पर लहरा रहे झंडे पर

    चिद्दी-चिद्दी कर डाली

    वे काँप रहे थे ग़ुस्से में थर-थर

    सब पर उतर रहा था

    सबसे ज़्यादा अम्मा पर

    वे बड़बड़ाते रहे और काँपते रहे

    वे काँपते रहे और बड़बड़ाते रहे

    हमने देखा

    उस दिन बाबूजी ने अन्न को हाथ नहीं लगाया

    अकेले टहलते रहे छत पर

    अपने अकेलेपन से बतियाते रहे

    उनकी यह बेचैनी

    शिखर से मेरे गिर जाने की थी

    या उनके सपने के

    असमय टूट जाने की था

    वह अमावस्या की रात थी

    बाबूजी मोतियों की जिस माला को गूँथ रहे थे

    वह टूटकर-बिखर चुकी थीं

    मोतियाँ गुम हो गई थीं

    उस अँधेरे में!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कौशल किशोर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY