बाबा साहेब का सपना

babasaheb ka sapna

बच्चा लाल 'उन्मेष'

बच्चा लाल 'उन्मेष'

बाबा साहेब का सपना

बच्चा लाल 'उन्मेष'

और अधिकबच्चा लाल 'उन्मेष'

    जब चुगे दाना चिड़िया,

    दूर तक कोई जाल हो

    इंसानी देह के ऊपर,

    भेड़िए की खाल हो।

    सच तो सच होता है,

    उससे क्या सवाल करें हम

    धर्म की आड़ में कोई,

    ईश्वर का दलाल हो।

    भय, भूख और ग़रीबी,

    है चरम पर आज छाई

    और कहते हो कि तुम

    ईश्वर पर सवाल हो?

    मिले न्याय सभी को बराबर,

    अन्यायी को मिले सजा

    संविधान के साए में कोई,

    बेबस और लाचार हो।

    विषमता की लग्गी हट जाए,

    इतनी मिट्टी पट जाए

    मिले सहज सभी को फल,

    कंधे से ऊपर डाल हो।

    गर हमसे भूलें भी हों,

    जलें तो केवल चूल्हे हों

    सबके हों सौग़ात भरे,

    किसी की ख़ाली थाल हो।

    मिले अधिकार, हक़-हुक़ूक़,

    हो उनकी हिस्सेदारी भी

    सहानुभूति के चाक़ू से अब,

    स्त्री कोई हलाल हो।

    ग़रीबों की पगड़ी गेंद हो,

    इज़्ज़त पर कहीं सेंध हो

    न्याय रखैल बन जाए,

    इतना भी कोई मालामाल हो।

    गल जाए खड्ग, भाल-ढाल सब,

    प्रेम की दहकती भट्टी में

    किसी पीठ के पीछे यारों,

    जाति का फेंका भाल हो।

    वंचनाओं का दंश झेले,

    मगरमच्छ उससे खेले

    रह पानी पर पी सके,

    उस मछली वाला हाल हो।

    उठो जगो, संगठित बनो,

    संघर्षों के आदी बनो

    क्रांतिकाल के इस बेला में,

    कछुए वाली चाल हो।

    सपना उनका स्वर्ग से सुंदर,

    मानवता का पाठ पढ़े हम

    मिल आपस में साथ रहें

    और दिलों में कोई मलाल हो।

    इंसानी देह के ऊपर,

    भेड़िए की खाल हो

    स्रोत :
    • रचनाकार : बच्चा लाल 'उन्मेष'
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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