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अवधी

awadhi

केशव तिवारी

अन्य

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और अधिककेशव तिवारी

    यह पहली बार मेरी ज़बान पर

    आई थी माई के दूध की तरह

    इसके ही इर्द-गिर्द मँडराती है मेरी संवेदना

    यह वह बोली है जिसमें

    सबसे पहले मैंने किसी से कहा

    कि मैं तुझे प्यार करता हूँ

    इसके प्राण बसते हैं

    बिरहा, कजरी और नकटा में

    आल्हा और चैती में तो

    सुनते ही बनता है इसका

    ओज और ठसक

    जायसी, तुलसी, तिरलोचन की

    बानी है यह

    यह उनकी है जिनका

    सुख-दुःख सना है इसमें

    धधक रही है जिनकी छाती

    कुम्हार के आवाँ की तरह

    जिसमें पक रहे हैं

    यहाँ की माटी के कच्चे बर्तन

    कल के लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : केशव तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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