अस्पताल और कवि
aspatal aur kavi
खड़ा हूँ एक राजकीय अस्पताल में
अस्पताल विशिष्ट होते हैं—
दुःख का अनंत विस्तार होता है यहाँ
समुद्र की तरह अथाह दुःख राशि
तोड़ देना चाहता है सागर तट की तरह
मानुष धीरज तट।
कचहरी की तरह यहाँ भी
हूब में अर्दली हैं
मुस्कराते संतरी हैं
डॉक्टर हैं
मुश्किल में कच्चे-पक्के मरीज़ हैं—
कच्चे मरीज़ जिनमें ज़िंदगी का अंश ज़्यादा है
बचे रहने की संभावना उनमें शेष है अभी
पक्केमरीज़ वे जो...
शायरन बजाते
दनदनाते एंबुलेंस हैं
रोती कलपती आँखें हैं
हाथ मलते लोग हैं
कफ़न से ढके मानव शरीर हैं...
जिसे मृत्यु आगार देखना हो
वह आ जाए राज्य द्वारा संचालित किसी भी राजकीय अस्पताल में
आधे कटे, सड़े–गले
मृत्यु की ओर घिसटते लोग मिलेंगे
विधवा हुई औरतें मिलेंगी
अनाथ होते बच्चे मिलेंगे...
राज्य की निगरानी में संचालित
राजकीय अस्पतालों में मौत की पूरी गिनती होती है
मृत्यु पंजिका मेंटेन की जाती है
मृत्यु प्रमाण पत्र और मृत देह को एनओसी उपलब्ध कराया जाता है।
एनओसी पाए मृत देहें और आँकडें दर्ज़ नहीं हो पाते
अख़बार के पन्नों
और
टी.वी. की ख़बरों में।
ये नागरिक रजिस्टर
और मतदान सूची
बनाने वालों की चिंता से बाहर होते हैं।
मैं कवि हूँ—
सृजन के गर्व से मदमाता
विशिष्ट जन
एक अपने को यहाँ देखने आया था
उसे देखा और कविता का नया विषय पाया
ख़ुश हूँ
कई दिनों बाद एक कविता लिख पाया।
- रचनाकार : जनार्दन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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