कविता

kawita

नीलमणि फूकन

और अधिकनीलमणि फूकन

    (उत्सर्गित : उमाशंकर जोशी के नाम)

    उतरे रहे हैं पहाड़ से

    उतरी रही शाम

    उतरती रही मेरे पीछे-पीछे

    कुछ चट्टानें

    आनुभूमिक उल्लम्ब वर्तुल—

    और खुदी हुई जिन पर

    आलिंगन-निरत देवता-अप्सरा किन्नर-किन्नरी

    नर-नारी

    प्राचीन रातें

    भेदकर धरती को उभरा रहा है एक पौधा अनार का

    एक पौधा संतरे का

    हज़ारों सालों की निस्तब्धता की गहराइयों से

    दो हाथ परदादा के—

    सलिल-सरल वृक्षों के पत्तों पर काँप रहीं

    शराली बत्तख़ों के झुण्ड की आवाज़ें

    उतरती रही शाम

    अपने चेहरे की ताम्र-मुद्रा में

    जल उठा मैं ही—

    एक लाल कमल में

    जल रहा एक मोती।

    मैं चट्टान और इंसान

    मैं कच्ची मिट्टी और इंसान

    खड़े एक महावृत्त के केंद्र पर

    कर रहा निरीक्षण

    अनल जल ग्रह-नक्षत्र पवन

    सूरज का एक घुड़सवार मैं

    सहस्त्रों जन्मों से कर रहा संचित

    शरीर में अपने

    समुद्रों का, अरणयों का, रेगिस्तानों का हर सूरज

    मेरी तन्मय चेतना में है

    हर काला सूरज, हर मौसम का!

    समयहीन नग्न मनुष्य मैं

    अनुभव कर रहा निन समग्र देह में

    कुछ चट्टानें—

    नीचे जल के, नीचे धरती के

    गिरकर दबी हुईं

    कुछ चट्टानें

    और इंसान के रक्त-मांस से निर्मित

    एक ग्रह

    लगता है होठों पर जीभ में

    उदर में—यकृत में

    अपने बड़े लंबे जीवन की नुकीली गोपनीयता में

    कुछ चट्टानें—

    आनुभूमिक उल्लम्ब वर्तुल

    शिव चट्टान और इंसान

    शिव साँड और चट्टान

    साँड और इंसान

    समय का स्पंदन

    मैं चट्टान और इंसान

    वह चुम्बन हूँ मैं

    लोगों ने चट्टानों को जो चूमा है

    बढ़ती जा रहीं महिलाएँ पहाड़ पर

    चट्टानों की एक सीढ़ी पर से

    चट्टानों का एक पहाड़

    मर्त्य स्वप्नों का आदि प्रज्ञान!

    सपने यौवन का संगीत

    रात होती जा रही है—

    चाँद निकला रहा है

    एक चीतल के सींगों से होकर

    आकाश चढ़ रही हैं चक्करदार कुंडलियाँ बनातीं

    आवाज़ें चट्टानों की

    शिव चट्टान और इंसान

    शिव जलता हुआ अंतहीन एक अग्निस्तंभ

    समाती जा रही है पार्वती शिव के शरीर में

    रो रही पार्वती

    भूगर्भ में अब है उषा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविताएँ 1984 (पृष्ठ 25)
    • संपादक : बालस्वरूप राही
    • रचनाकार : नीलमणि फूकन
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1986

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