आवाज़ : चेहरे और आत्माएँ

awaz ha chehre aur atmayen

हेमंत देवलेकर

हेमंत देवलेकर

आवाज़ : चेहरे और आत्माएँ

हेमंत देवलेकर

और अधिकहेमंत देवलेकर

     

    मन्ना डे की आवाज़ की कुछ अनुभूतियाँ

    नीम के तने-सा कत्थई रंग है 
    इस आवाज़ का
    ये आवाज़ हम्मालों, फ़क़ीरों और मल्लाहों की है
    इस आवाज़ का सीना
    पहाड़-सा चौड़ा और गुंबदों-सा बुलंद है
    इसके सीने के बाल
    सख़्त धूप झेलने से जल से गए हैं

    यह आवाज़ बचपन से ही इतनी संघर्षशील थी कि 
    इसके कोमल कंधे चौड़े होते गए और
    ये आवाज़ बचपन में ही 
    बूढ़ी-सी लगने लगी

    ये शख़्स शक्ल-ओ-सूरत में निहायत साधारण
    यह किसी के सपनों का राजकुमार न बन सका
    लेकिन प्यार इसने इबादत की तरह किया
    यह अकेला घाटियों में अब भी पुकार लगाता है
    न आने वाली सदाओं के लिए
    कोई दुर्भावना नहीं इस आवाज़ में

    तमाम पीड़ाओं और वंचनाओं का
    कोरस है ये आवाज़
    तमाम संघर्षों, आंदोलनों, जुलूसों के 
    जनगीतों का लोहा और नमक
    इस आवाज़ में शामिल है

    इस आवाज़ में लगातार बहता है पसीना
    लोहे-लंगड़ से भरा
    भारी एक ठेला धकेलता
    पुल चढ़ाता हम्माल
    उसके पाँवों की फूलती पिंडलियों का
    दम है ये आवाज़

    इस आवाज़ में लहराता है 
    दिशाओं में खोया महासागर
    और तूफ़ानों से टकराते जहाज़ के
    मस्तूल का फड़फड़ाना
    किनारा पा लेने की अदम्य इच्छा
    और पौरुष का दुस्साहस है ये आवाज़

    दुआ के लिए उठे हाथों का मसीहा चेहरा
    इसमें आता है नज़र,
    मोर्चे की ओर कूच करते
    फ़ौजियों के क़दम
    ये आवाज़ सुन ठिठकते हैं
    उन्हें सुनाई देती है जंग की निस्सारता
    बंदूक़ें शांति के लिए प्रार्थना
    इसी आवाज़ में करती हैं,
    मिट्टी की कातर आँखों में
    काले मेघों के छा जाने का
    स्वप्न है ये आवाज़,
    ये आवाज़ जब लोरी गाकर
    बच्चों को सुलाती है
    इसकी छाती में दूध उतरने लगता है

    इस आवाज़ में बैलगाड़ियाँ हैं, 
    अधकच्ची शांत सड़कें
    संगीत एक दिन
    क्रूरता और हिंसा से भर जाएगा
    और शांति में दम घुटने लगेगा
    इस कल्पना का ख़याल तक नहीं आने देती
    ये ब्लैक एंड व्हाइट आवाज़

    अपराधियों का पश्चाताप है इस आवाज़ में और
    प्रायश्चित इसी आवाज़ में किए जाते हैं

    जब तलक धरती पर वजूद
    आदमी की क़ौम का
    ये आवाज़ इंसानियत के बचे रहने का पुख़्ता यक़ीन है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हेमंत देवलेकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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