आँसू गहराई की आकस्मिकता है : तीन

ansu gahrai ki akasmikta hai ha teen

संदीप रावत

संदीप रावत

आँसू गहराई की आकस्मिकता है : तीन

संदीप रावत

और अधिकसंदीप रावत

    क्या उड़ा जा रहा है

    नहीं जानता कोई

    जब कोई कुछ नहीं कह पाता तो ध्यान अपनी ही लिखावट आदत

    देह, भय और स्वप्नों के ऊपर

    उड़ने लगता है ख़ुद ही से पूछता हुआ—

    क्या उड़ा जा रहा है

    उड़ते हुए कहीं चमक उठता है मगर मुझको नहीं पहचानता

    जैसे सब कुछ सब जगहों से उड़ा जा रहा है

    अपनी ही खोज पर विस्मय से चीख़ता हुआ

    ‘उड़ने से प्रकाश प्रकट होता है!!! प्रकाश!!!’

    नहीं जानता मगर कि क्या उड़ा जा रहा है

    उड़ने के लिए उसे ज़रूरत नहीं मेरी

    अँधेरे में से कहीं एक आवाज़ आती है

    कोई नहीं पूछता ‘किसकी?’

    ऐसा इसलिए नहीं कि लोगों की नींद पूरी नहीं हुई कब से

    बल्कि कोई इसलिए नहीं पूछता

    क्योंकि वो उन्हें जाग्रति के पेचीदा सपनों में डूबने से बचा लेती है

    सपना टूटने की आवाज़ सपने से बाहर नहीं आती है

    वो जो बग़ैर किसी कारण और शरीर के डूब रहा था

    उसे सिर्फ़ टूटते सपने की आवाज़ ही जानती है

    जो पहले ही उड़ चुकी है असंख्य किरणों के साथ जहाँ

    ‘न जानना’ उड़ा जा रहा है

    बिजली की कौंध

    सीते रहते हैं

    हममें

    अँधेरे के हाथ

    एक गर्जना-क्षण में

    सब आया गया

    एक क्षण साथी

    है हर तरफ़ छाया हुआ

    कोई विदा

    किसी से नहीं कह रहा

    राख-मिट्टी बनकर भी नहीं

    आबोहवा में मिलकर

    कैसे कह सकता है विदा कोई

    दुनिया को नहीं जाना कहीं

    राख़ बनकर उड़ना है क्षण भर

    आब बनकर बहना है क्षण भर

    बग़ैर किसी से जुदा हुए

    बग़ैर किसी से विदा लिए

    राख़ का लम्हा उड़ रहा

    आब का लम्हा उड़ रहा

    उड़ रहा प्रकाश का लम्हा

    जानने का लम्हा उड़ रहा

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप रावत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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