आँसू गहराई की आकस्मिकता है : एक

ansu gahrai ki akasmikta hai ha ek

संदीप रावत

संदीप रावत

आँसू गहराई की आकस्मिकता है : एक

संदीप रावत

और अधिकसंदीप रावत

    कुछ कहते-कहते रुका हुआ हूँ

    कुछ शब्द याद में कब से नहीं लौटे

    दिल पर एक सफ़ेद पंख के भार के सिवा और क्या है

    कुछ नहीं! यही दिल का सितारा है!

    कुछ कहते-कहते

    रुका हुआ हूँ किसी याद पर चोट पर

    फ़ासले फ़ैसले किसी संकेत पर

    तुम कबसे सरल और बहुत पास की चीज़ों पर ध्यान दे रहे हो

    इसीलिए कुछ कहते-कहते रुकने लगे हो—एक दोस्त ने कहा

    तुमने एक बार अपने शब्दों को गिनकर देखा?

    हाँ, मगर चोटों, सिक्कों और दुश्मनों की तरह नहीं

    सितारों की तरह गिनते हुए जब वे बहुत कम रह गए तो मैंने

    गिनना छोड़ दिया

    जब कुछ कम-कम-सा रह जाता है तो असंख्य तारों-सा चमक उठता है

    एक स्याह संगीत उसमें से झाँकता रहता है मौन विलम्बित लय में

    फैलता रहता है कभी द्रुत लय में

    देखो इस घर को कहा एक स्त्री ने

    बाहर बग़ीचे को देखो और बताओ

    कुछ शब्द याद आने से ये कैसा नज़र रहा है—

    ये बहुत ख़ाली नज़र रहा है

    हर तरफ़ यही घर यही बग़ीचा नज़र रहा है

    कितनी ख़ाली व्याख्याएँ हैं मेरी

    सुरंगों और साज़ों की तरह

    कुछ शब्द यहीं से निकलते हैं क्या

    कुछ कहते-कहते जहाँ रुक गए वहीं हमने

    एक रात

    विश्राम करने का फ़ैसला किया

    सब कुछ के बारे में कुछ कहते-कहते अचानक रुक जाने की ख़ामोशी

    अँधेरे में तारों के प्रकाश को देखते-देखते प्यार में बदल गई

    और उसने हमसे हमारे किसी भी शब्द का अर्थ नहीं पूछा

    जैसे सब कुछ में कोई अर्थ हो

    अर्थ के भीतर बाहर

    ख़ाली एक घर

    या बग़ीचा हो

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप रावत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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