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अंगहीन

anghin

अनुवाद : अशोक जेरथ

जब कभी

मुझे अपना बचपन स्मरण हो आता है

पता नहीं क्यों, मुझे नींद-सी आने लगती है

घुप्प अँधेरे में

चमगादड़ की तरह उड़ान भरने लगता है

मेरा मन

और दूर पीछे रह गए सफ़र के मोड़ पर

उसको तलाशने लगता है

मुस्कुराता हुआ एक लड़का

चेते, पहली पहचान की गोद में

एक जम्हाई लेकर जग जाते हैं

उसको अपने पास बुलाने लगते हैं

ताकि वह

थोड़ा-सा मुझे अपना रूप उधार दे दे

दे दे अपनी अनमोल मुस्कान

चाहे एक क्षण के लिए ही सही

लेकिन रूठ जाता है वह लड़का

जिसको मैं पीछे छोड़ आया था

मेरा बचपन, मेरा अंश

और फिर मैं वर्तमान का 'मैं'

एक बार दुबारा अंगहीन हो जाता हूँ।

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 103)
  • संपादक : ओम गोस्वामी
  • रचनाकार : सुतीक्ष्ण कुमार आनंदम
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2006

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