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अनंत है जो गुलाब

anant hai jo gulab

अनुवाद : सुरेश सलिल

होर्खे लुइस बोर्खेस

अन्य

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होर्खे लुइस बोर्खेस

अनंत है जो गुलाब

होर्खे लुइस बोर्खेस

और अधिकहोर्खे लुइस बोर्खेस

    (सुज़ाना बोम्बल के लिए)

    हिजरत के बाद पाँच सौ सालों में, पहली बार

    फ़ारस ने रेगिस्तानी बर्छों के हमले के वक़्त

    अपनी मीनारों से नीचे देखा,

    और नीशापुर के अत्तार ने एक गुलाब पर टकटकी बाँधी—

    बेआवाज़ शब्दों से उसे संबोधित करते हुए,

    कुछ-कुछ उस आदमी की तरह, जो प्रार्थना की बजाय

    ध्यान-धारणा में यकीन रखता है :

    'तुम्हारा नश्वर भूमंडल मेरे हाथ में है और समय

    हम दोनों को झुका रहा है, और दोनों अनभिज्ञ हैं,

    इस तिपहर, एक विस्मृत बाग़ीचे में।

    तुम्हारी भंगुर आकृति हवा से आर्द्र है,

    तुम्हारी सुगंधि की संतुलित और उत्फुल्ल पूर्णता

    मेरे बूढ़े और उतरे हुए चेहरे तक ऊपर उठ रही है।

    किंतु मैं तुम्हें उस बच्ची की अपेक्षा अधिक समय से जानता हूँ

    जिसने एक सपने की तहों में तुम्हारी झलक दिखाई थी,

    अथवा यहाँ, इस बाग़ीचे में, किसी एक सुबह,

    सूर्य का धवल प्रकाश अथवा चंद्रमा की स्वर्णाभा,

    अलावा इसके, विजय-खड्ग की कठिन धार पर लगे

    गहरे लाल धब्बे, संभवतः, उचित ही तुम्हारे हैं।

    मैं अंधा हूँ और सब कुछ से अनभिज्ञ,

    किंतु मैं देखता हूँ कि रास्ते और भी हैं, और प्रत्येक वस्तु

    वस्तुओं की अनंत शृंखला है, तुम, तुम संगीत हो,

    नदियाँ, आसमान, महल-दुमहले और फ़रिश्ते,

    अनंत गुलाब, अंतरंग और अंतहीन,

    जो अंततः प्रभु मेरी मृत आँखों को दिखाएँगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 175)
    • रचनाकार : होर्खे लुइस बोर्खेस
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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